डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

हाऊं,
कुण हा
कैथी हा
कियांहा हा
मुंझो किछ भी त
थोग पत्ता नी !

मेरी पक्की परख पहचाण ,
हाडकुआ री कोठरुआ मंज बंद
एक जियुंदा हांडदा टपदा
जगह जगह थुड खांदा
माणु जाती रा प्राणी,
तेथी जेथी जे
माणु माणु जो नी पचाणदा !

मेरे हाथा ले
लहू रिस्दा लगी रा,
मेरे पैरे न करी दिती री
होर मुंझों परैसे मंज
न्हैरा दुसदा लगी रा,
भेरी भी हाऊं चली रा
पता नी की, कियां कैथी ?
किच्छ भी थोग पता नी !

हाऊं आपू आपू
जो भुली गई रा,
मेरी आत्मा मिंझो
कोतदी लगी री,
फेर भी किहां केस कठ
जियूंदा लगी रा,
कोई थोग नी !

मेरा सरीर हुंण
लुहाखदा लगी रा,
ठीक तीहांही जिहियाजे
हांऊं जम्मेआ था।
लगान्हा हां सै मिंझों
साददा लगी रा !

पर हांऊं एबे तक
पूरी तरह ने तेस
हालता नी पुजी रा,
तेबे ही त हांऊं
हियुंदा मंज ठिठुर ठिठुर
कामबंदा फिरन्हा
होर तोंदियां मंज
फुकी फुकी ने जली जहां !

एक पहचाण: डॉo कमल केo प्यासा

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