वैशाख मास का प्रसिद्ध त्योहार वैशाखी, जो कि नई फसल के पकने व घर पर पहुंचने की खुशी में मनाया जाता है कि अपनी ही रंगत उत्तर भारत के दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू, चंडीगढ़ व हिमाचल मे देखने को मिलती है। वैशाख मास का प्रथम दिन अर्थात 13 या 14 अप्रैल जो कि सौर मास का भी प्रथम दिन होता है और इसी दिन से सूर्य अपना रास्ता बदल कर मेष राशि में प्रवेश करता है। तभी तो इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। वैशाख माह का महत्व इस लिए भी रहता है क्योंकि देश के कई क्षेत्रों में वैशाख के प्रथम दिन को ही नव वर्ष के त्योहार के रूप में मनाते हैं। जैसे जुड़ शीतल त्योहार, बिहार व नेपाल में, पोहेला बेशाक त्योहार, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा व बंगला देश में और यहीं इसी त्योहार के अवसर पर, मंगल शोभा यात्रा भी निकाली जाती है।
विशु त्योहार केरल में तथा पुत्थाँडु/पुथुवरूषम त्योहार तमिलनाडु में मनाया जाता है और यहां महीने के पहले दिन को चिथीराई कहते हैं। पंजाब में जहां वैशाखी नई फसल (गेहूं, तिलहन व गन्ना) के आगमन की खुशी के लिए मनाई जाती है, वहीं एक दूसरा कारण इधर सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के 13 अप्रैल, 1699 में खालसा पंथ की स्थापना से भी जुड़ा बताया जाता है। वर्ष 1672 में जिस समय गुरु गोविंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर पटना से पंजाब होते हुवे इधर पहाड़ी क्षेत्र चक्क नानकी (आनंदपुर साहिब) आए थे तो कुछ समय बाद यहीं, उनके पास कुछ कश्मीरी पंडित मुगलों के विरुद्ध शिकायत ले कर पहुंचे थे, जिन्हें उधर धर्म परिवर्तन के लिए जबरदस्ती प्रेरित किया जा रहा था।
जिसके लिए उन्होंने गुरु जी से सहायता के लिए कहा था। तब गुरु तेग बहादुर जी ने उन्हें, बादशाह औरंगजेब से मिल कर बात करने का आश्वाशन दिया था। और उनको (कश्मीरी पंडितों को) वापिस भेज दिया था। उधर औरंगजेब को इसकी सारी जानकारी व सूचना गुप्तचरों द्वारा, गुरु जी के दिल्ली पहुंचने से पहले ही पहुंच गई। गुरु जी दिल्ली पहुंच पाते उससे पूर्व ही उन्हें रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया गया। और फिर औरंगजेब द्वारा गुरु जी पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला जाने लगा। लेकिन गुरु तेग बहादुर जी अपने धर्म पर अडिग रहे, उन्होंने धर्म बदलने से उचित जान देना ही समझा। जालिम औरंगजेब ने 11 नवंबर 1675 को आदेश दे कर गुरु तेग बहादुर जी का सिर धड़ से अलग करवा दिया।
गुरु जी के इस बलिदान के पश्चात बेटे गोविंद सिंह ने जालिम बादशाह से बदला लेने की ठान ली थी। फिर 29 मार्च, 1676 को 10 वें गुरु के रूप में गुरु गोविंद सिंह गद्दी पर बैठे और बैठते ही उन्होंने मुगलों के विरुद्ध अपना अभियान शुरू कर दिया था। वर्ष 1687 में पहाड़ी राजाओं के सहयोग से गुरु जी मुगल अलिफ खान को बुरी तरह से पछाड़ने में सफल रहे थे। वर्ष 1699 में वैशाखी वाले दिन ही खालसा पंथ की स्थापना करते हुवे, पांच प्यारों का चयन करके, उन्हें अमृत छकाया गया था तथा उन्हें पांच कक्कों (केश, कंघा, कड़ा, किरपाण व कच्छा) के महत्व भी बताए थे। 8 मई 1705 को मुक्तसर के युद्ध में मुगलों को बुरी तरह परास्त करके गुरू जी ने उनसे अपने पिता व बेटों का बदला ले लिया था। खालसा पंथ के स्थापना से वैशाखी का महत्व ओर भी बढ़ गया।
इस लिए इस दिन गुरुद्वारों,पवित्र तीर्थ स्थलों,मंदिरों व पवित्र नदियों,झीलों,तालाबों तथा जल स्रोतों पर स्नान करने वालों का जमावड़ा लगा होता है।एक तो इस दिन नव सावंत की शुरुआत होती है,दूसरे वैशाखी की फसल के आने की खुशी रहती है।इसी लिए इस दिन पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान को शुभ समझा जाता है।स्नान के पश्चात मंदिर या गुरुद्वारे जाना शुभ कार्य समझा जाता है।इसके पश्चात घर में बड़े बुजुर्गों के पांव छू कर आशीर्वाद लेना भी एक अच्छी परंपरा चली आ रही है। बौद्ध गुरु महात्मा बुद्ध को भी इसी दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी , फलस्वरूप बुद्ध धर्म के लोग इसी लिए वैशाखी को महत्व देते हैं। आर्यसमाजी इस दिन को इस लिए महत्व देते है ,क्योंकि इसी दिन वर्ष 1875 में दया नन्द सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना की थी। वैशाखी के संबंध में ही पौराणिक कथाओं से पता चलता है कि इसी दिन युधिष्ठिर द्वारा यक्ष से अपने चारों पांडव भाईयों को जीवन दान दिलाया था।
वैशाखी के दिन जहां गुरुद्वारों में शब्द, गुरुबाणी, लंगर व कार सेवा, नगर कीर्तन, साहसिक खेलों का आयोजन, छबीलों, फलों व अन्य खाने की सामग्री का खुला भंडारा रहता है। वैसे ही मंदिरों में पूजा पाठ, भजन कीर्तन, दान दक्षिणा व घाटों पर स्नान, व भांत भांत की वस्तुओं का दान दक्षिणा दिए जाते हैं। कई स्थानों व तीर्थ स्थलों में विशेष मेलों का भी आयोजन रहता है। हिमाचल में वैसाखी के मेलों के लिए रिवालसर का वैसाखी मेला अति प्रसिद्ध है और तीनों धर्मों (हिंदू, सिख व बौद्ध) के लोग इस साँझे मेले में शामिल हो कर व पवित्र झील में स्नान करके पुण्य कमाते हैं। ऐसे शिमला/मंडी का तता पानी, कुल्लू का मणिकरण व वशिष्ठ, मंडी की पराशर झील, कमरू नाग झील व मच्छयाल जल स्रोतआदि कुछ ऐसे प्रसिद्ध स्थल हैं, वैसाखी के स्नान के लिए। फिर देश के अन्य तीर्थ स्थलों में आ जाते हैं, हरिद्वार, वाराणसी, कुरुक्षेत्र, प्रयागराज, द्वारका, पूरी, रामेश्वरम व अमृतसर आदि।
वैशाखी स्नान के लिए कुछ एक नदियां अपना विशेष स्थान रखती हैं ,और उनमें शामिल हैं : गंगा,यमुना ,सरस्वती,कावेरी,गोदावरी, रावी,ब्यास,सतलुज,चना ब व सिंधु आदि। पवित्र स्नान के पश्चात ही कुछ लोग वैशाख का व्रत रखते हैं।जिसमें भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है।इस व्रत से धन दौलत,समृद्धि व संतान सुख की प्राप्ति होती है। पूजन में विष्णु के अवतार भगवान परशु राम,नृसिंह ,कूर्म व भगवान के बुद्ध अवतार की पूजा भी की जा सकती है।तुलसी व पीपल का पूजन भी इस दिन विशेष महत्व रखते है। इसी दिन विशेष पकवान भी बनाए जाते हैं और शुभ कार्यों की शुरूआत भी वैसाखी से की जाती है क्योंकि वैसाखी सभी के लिए शुभ संदेश ले के आती है।