डॉ मधु जी शर्मा
आज किसान दिवस है (23 दिसंबर)। आईये हम सब मिलकर किसानों को धन्यवाद कहें कयूंकि मुझे नहीं लगता की भोजन करने के बाद हम में से कोई भी किसान को धन्यवाद कहता होगा। सब उसी को धन्यवाद कहते हैं जो खाना बनाता या परोसता है। कहते हैं “अन्नदाता सुखिना भवंतु” लेकिन असली अन्नदाता कौन है? खाना बनाने वाला या परोसने वाला? नहीं ! बल्कि अनाज उगाने बाला असली अन्नदाता है ।
हम टीवी, फ्रीज, ए सी और मोबाइल फोन के बिना रह सकते हैं लेकिन भोजन के बिना नहीं रह सकते। अगर एक समय का भोजन न मिले तो आँखे बाहर को आने लगतीं हैं । लेकिन बिडंबना है हमारे देश की, कि मोबाइल व एसी बनाने वाले तो अरबपति हैं लेकिन जीवन के लिए सबसे आवश्यक, अन्न उगाने वाला किसान आत्महत्या कर रहा है । करोड़ों का कर्ज लेकर विदेश भागने वाले कार्पोरेट्स का कोई कुछ नहीं कर सकता है लेकिन 5-10 हजार रुपये का कर्ज लेकर जान देने वाले किसान की आत्महत्या पर लोग कहते हैं कि कुछ और कारण रहा होगा आत्महत्या का, बारिश न होने की वजह से कौन मरता है भला ?
किसान को पता होता है कि बारिश होने पर उसकी छत टपकने लगेगी फ़िर भी वो बारिश के लिए दिन-रात भगवान् से प्रार्थना करता है ।
उसकी आवश्यकतायें भी बहुत सीमित होती हैं। उसकी सबसे बड़ी आवश्यकता पानी है । यदि समय पर वर्षा नहीं होती है तो किसान उदास हो जाता है । इनकी दिनचर्या रोजाना एक सी ही रहती है । किसान ब्रह्ममुहूर्त में सजग प्रहरी की भांति जागता है । वह घर में नहीं सोकर वहां सोता है जहां उसका पशुधन होता है ।
उठते ही पशुधन की सेवा, इसके पश्चात अपनी कर्मभूमि खेत की ओर उसके पैर खुद-ब-खुद उठ जाते हैं । उसका स्नान, भोजन तथा विश्राम आदि जो कुछ भी होता है वह एकान्त वनस्थली में होता है । वह दिनभर कठोर परिश्रम करता है । स्नान भोजन आदि अक्सर वह खेतों पर ही करता है । सांझ ढलते समय वह कंधे पर हल रख बैलों को हांकता हुआ घर लौटता है ।
तमाम जीवन अभाव में गुजार कर अभाव में ही मर जाता हैं । कभी कोई किसान के प्रति आभार प्रकट नहीं करता । होटल में खाना खिलाने वाले वेटर को भी लोग खुशी से टिप देते हैं पर उस खाने को प्लेट तक पहुंचाने में किसका योगदान है इसका किसी के मन में खयाल तक भी नहीं आता है । उसकी उगाई हुई फसल बहुत कम दामों में उससे खरीद कर आगे उँचे दामों पर बेची जाती है। किसान गरीब का गरीब ही रह जाता है और उसकी ऊगाई फ़सल को आर्गेनिक के नाम पर, बड़े बड़े ब्रांड्स के नाम के ठप्पे लगा कर बेचने वाले और अमीर होते जाते हैं । ये कैसी विडम्बना है ।
मुंशी प्रेमचंद जी ने भी किसानों के जीवन का जीवंत चित्रण अपनी कहानियाँ में किया था। “मदर ईडिया” पिक्चर किनसे नहीं देखी होगी? समय-समय पर लेखक, कहानीकार, सिनेमा, कवि सब किसानों की दुर्दशा को अपने अपने माध्यम से दिखाने की कोशिश करते रहे पर किसान जहाँ था आज भी वहीँ है।
वह कितना भी सफ़र कर ले अपनी मंजिल तक कभी नही पहुँच पाएगा। भूख प्यास और कर्ज से दब कर अपने प्राण ऐसे ही देता रहेगा ।
किसान दिवस मनाने से भी क्या कुछ होने वाला है? पर चलो आज हम सब मिलकर किसानों को धन्यवाद कहें ।
किकली का प्रयास सराहनीय है इसके लिए संस्था वह इसके समर्पित कर्णधार बधाई के पात्र हैं