डॉ. जय महलवाल
बहुत याद आती है वो आज़ादी की पहली सुबह,
15 अगस्त 1947 को था जब भारत में तिरंगा फहराया।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब बने थे भाई भाई,
अपनापन था झलक रहा सब में कोई नहीं था पराया।।
अपनों से बिछड़ जाने के थे दर्द बड़े-बड़े,
ना चाह कर भी देश के दो टुकड़े थे करने पड़े।
दो कौमों को आपस में लड़ा कर फिरंगी थे खुश बड़े,
ऐसी लूट मची थी उस वक्त कुछ थे हिंदुस्तान तो कुछ थे पाकिस्तान में पड़े।।
15 अगस्त 1947 से पहले की सुबह थी बहुत काली,
डर से थे कुछ कांप रहे तो कुछ मांग रहे थे पानी।
किसी ने बहुत चालाकी और चतुराई से,
थी दो कौमों को जुदा करने की साजिश रच डाली।।
दो टुकड़े करके हिंदुस्तान के,
लोगों के बीच थी लड़ाई करवा डाली।
किसी के उजड़ गए आशियाने तो किसी ने दी अपनी कुर्बानी,
फिर वो आजादी की पहली सुबह बनी थी सुहानी।।
कहे “जय” अपनी सोच को ऐसा बनाएं,
खुशहाल हो भारत अपना ऐसा अपना देश बनाएं।
आजाद तो हैं हम पर मानसिक गुलामी से भी आजाद हो जाए,
जात पात धर्म का भेदभाव छोड़कर आओ इंसान हो जाएं।।