December 23, 2024

गणित दोस्ती का — रणजोध सिंह

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रणजोध सिंह

अंकित रात भर सो ना पाया था | मस्तिष्क में स्मृतियाँ किसी चल चित्र की भांति चल रही थीं | उसने देखा राजू उसका सबसे प्रिय मित्र है, जिसके साथ वह जिन्दगी का हर राज़, हर सुख-दुःख सांझा करता है | वह जीवन के हर क्षण में उसके साथ खड़ा हुआ है | फिर राजू उसके राज़ सार्वजनिक कैसे कर सकता है?

उसका दिल कहता, “नहीं-नहीं राजू ऐसा कर ही नहीं सकता |” लेकिन बुद्धि उसका मजाक उड़ाने लगती, “अभी भी उसे दोस्त ही मान रहे हो, क्या विश्वासघाती कभी दोस्त हो सकता है?” मगर दिल तो दिल है, वह बुद्धि की बात कब सुनता है |

सुबह उठा तो नींद न आने के कारण सिर में दर्द हो रहा था | उसने निर्णय किया कि सर्व प्रथम राजू से मिला जाये ताकि सही तस्वीर सामने आ सके | अगले तीस मिनटों में वह राजू के सामने था | दोनों दोस्त कॉफ़ी शॉप में मिले थे | इससे पहले कि अंकित कुछ कहता, राजू ने शिकायत भरे स्वर में वही बात कह दी जो अंकित राजू को कहना चाहता था | ‘चट्टाक’ एकाएक जोर से शब्द ध्वनि हुई | कॉफ़ी शॉप में बैठे हुये समस्त ग्राहक व कर्मचारी एकटक दोनों दोस्तों को देखने लगे | अंकित तो पहले से ही जला-भुना था, ऊपर से जो शिकायत वह करना चाहता था वो ही शिकायत राजू ने अंकित को लेकर कर दी |

अंकित तो आग बबूला हो गया, उसने आव देखा न ताव एक जोरदार चांटा राजू के गाल पर जड़ दिया और लगभग चीखते हुये बोला, “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” यह कहकर वह तेजी से कॉफ़ी शॉप से बाहर निकल गया | यद्यापि राजू की सेहत अंकित की सेहत से बहुत अच्छी थी | यदि वह प्रतिउत्तर देता तो अंकित का चेहरा बिगाड़ सकता था | मगर राजू तो जैसे सुन ही हो गया हो | वह अवाक सा खड़ा उसे जाते देखता रहा |

कुछ महीनों बाद अंकित के अन्य मित्रों ने समझाया कि उसके मन में राजू के प्रति जो द्वेष है वह उसे मन से निकल देना चाहिए क्योंकि इस सारी घटना में राजू का कोई दोष नहीं था | वास्तव में यह काम तो उनके अन्य सहपाठियों का था जो उनकी दोस्ती से जलते थे |

खैर वक्त ने करवट ली और शैने-शैने उनके मन की कड़वाहट, एक बार फिर दोस्ती की मीठी चाशनी में ढल में गई | लेकिन अंकित मन ही मन अपने व्यवहार के लिये बहुत शर्मिंदा था | राजू के सामने वह सहज नहीं हो पता था | एक प्रश्न उसे रात दिन कचोटता था कि जब उसने गलत फहमी में अपने मित्र पर हाथ उठाया था तब राजू ने बेकसूर होते हुये भी प्रतिउत्तर क्यों नहीं दिया? लेकिन राजू ने इसको लेकर कभी कोई गिला शिकवा नहीं किया |

आखिर एक दिन अंकित ने राजू से इस बावत पूछ ही लिया | राजू ने मुस्कुराते हुये सहजता से कहा “मैं तुम्हारा दोस्त हूँ यदि मैं भी तुम्हारी तरह ही करता तो आज हम इकठ्ठे बैठ कर चाय कैसे पीते?”

यह कह कर राजू हंसने लगा और अंकित की आँखों में अश्रुधारा बहने लगी | उसने तुरन्त राजू को गले लगा लिया |

Keekli Bureau
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