भीम सिंह नेगी, गांव देहरा हटवाड़, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश।

मजदूर चला दिहाड़ी लगाने को
खून पसीने की रोटी कमाने को
मुझ में भी जीने का दम है
बता रहा आज जमाने को।

फटा पुराना पाता हूँ
रूखी सूखी खाता हूं
लेकर नाम अपने प्रभु का
सुख की नींद सो जाता हूं ।

मजदूर हूं मजबूर हूं
सबके नखरे सहता हूं
बुराई से मैं डरता हूं
थोड़े में संतोष करता हूँ।

मेरे बिना कोई भी देश
कभी तरक्क़ी कर नहीं सकता
हर विकास में मेरा खून पसीना बहा है
जिसकी कीमत कोई चुका नहीं सकता।

मेरी जिन्दगी में सुख कम हैं
फिर भी खुश मैं रहता हूं
सर्दी, गर्मी और बरसात को
चट्टान बन मैं सहता हूं।

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