September 23, 2025

शिष्टाचार — रणजोध सिंह

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रणजोध सिंह

भोला राम जिसे प्यार से गाँव के सभी लोग भोलू कहकर पुकारते थे, आरम्भ से ही न केवल कुशाग्र बुद्धि का स्वामी था अपितु अत्याधिक मेहनती भी था | यही कारण था कि वह एक छोटे से गाँव से निकल कर लोक निर्माण विभाग में अभियंता के पद पर पहुँच गया था | फिर एक दिन वह अपने गाँव के कच्चे घर को छोड़ कर शहर के पक्के मकान में आ गया | उसके पड़ोस में उसके ही विभाग के अन्य अधिकारी श्री वास्तव जी रहते थे, जो पद में भोलू से वरिष्ठ थे, लेकिन थे बड़े मृदु स्वभाव के | भोलू तो आरम्भ से ही अत्यंत मिलनसार था, अत: उनके मध्य स्नेह की मृदुल कलि का प्रस्फुटित हो जाना कोई अतिश्योक्ति नहीं थी | शीघ्र ही वे दोनों एक-दूसरे के घर आने-जाने लगें |

एक दिन भोलू अपने घर में बैठा हुआ सुस्ता रहा था तभी श्री वास्तव जी का फ़ोन आया उन्होंने अत्यंत विनम्र शब्दों में भोलू से पूछा, “तुमसे मिलना चाहता हूँ अगर फ्री हो तो आ जाऊं ?”

“अरे ! कमाल है श्री वास्तव जी, ये भी कोई पूछने की बात है आपका अपना घर है आ जाईये |” पर मन ही मन भोलू श्री वास्तव जी के इस शिष्टाचार पर काफी दुखी भी हुआ क्योंकि उनके घर का दरवाजा भोलू के घर के दरवाजे से एकदम सटा हुआ था | भोलू को याद आया कैसे वह अपने गाँव में किसी भी समय, किसी के भी घर बिन बुलाये चला जाता था और गाँव का कोई भी आदमी उसके घर चला आता था | वह तो अभी तक भी इस रीत को पकडे हुए, श्री वास्तव जी का दरवाजा खटखटा देता था | खैर श्री वास्तव जी जितनी भी बार उसके घर आते भोलू से फ़ोन पर आज्ञा लेकर ही आते |

आज भोलू को श्री वास्तव जी से कुछ काम आन पड़ा था इसलिए अगले ही क्षण वह उनके दरवाजे के सामने था |

वह दरवाजा खटखटाने वाला ही था कि उसे याद आया श्री वास्तव जी जितनी बार उसके घर आते हैं, फ़ोन करके ही आते हैं | क्या मालुम वो उससे भी यही कामना करते हों | उसके हाथ वहीं के वहीं थम गये और कदम पीछे हटने लगे | वह शीघ्रता से घर गया और श्री वास्तव जी को फ़ोन लगाया, “सर, मैं भोला राम बोल रहा हूँ आपसे मिलना चाहता हूँ, क्या आपके पास मेरे लिए कुछ वक्त है ?”

वक्त की नज़ाकत ने भोलू को भी शहरी शिष्टाचार सिखा दिया था |

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Keekli Bureau
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