भीम सिंह, गांव देहरा हटवाड़, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ।

स्वतंत्र कहां हूं मैं
भय के साए में आज भी पलती हूं मैं
पति के प्रकोप से आज भी डरती हूं मैं
घर से लेकर खेत खलिहान तक
घर के हर काम को करती हूं मैं ।

स्वतंत्र कहां हूं मैं
आज भी दोराहे पर खड़ी हूं मैं
सामाजिक बंधनों में जकड़ी पड़ी हूं मैं
जुल्मों का शिकार आज भी हो रही हूं मैं
अपनी बदहाली पर आज भी रो रही हूं मैं ।

स्वतंत्र कहां हूं मैं
नर के आगे आज भी गौण हूं मैं
दरिन्दों के आगे आज भी मौन हूं मैं
कहने को तो बराबर की अधिकारी हूं मैं
मगर नर के इशारे पर चलने वाली पौण हूं मैं ।

स्वतंत्र कहां हूं मैं
आपको कहां से इतनी खुशहाल दिखती हूं मैं
ससुराल की चक्की में आज भी पिसती हूं मैं
नारी होने का एहसास हरदम रहता है मुझमें
जीवन में आज भी कई बार खून के आंसू पीती हूं मैं ।

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