कवि ने लिखी
अपनी नज़र में
बेहद खूबसूरत एक
नई कविता
लिखते ही
उल्लास में पुकारा उसने
अपनी बीवी को
अजी सुनती हो
इधर तो आना ज़रा
पत्नी रसोई का काम छोड़
जल्दी में हाथ पोंछती
अदब से आ खड़ी हुई
कवि को पन्ने पलटते देख
माजरा समझ गई और
हड़बड़ी दिखाते एक दम बोली
रुको जरा गैस पर दूध उबलने रखा है
उसे बंद कर अभी आई
उसके बाद पत्नी को
कुछ भी सुनने की
फुरसत नहीं मिल पाई…
बच्चों में बहुत फुसलाने पर भी
कोई हाथ न आया
फेसबुक पर लगाई तो
वहां भी सन्नाटा पसरा पाया
हिम्मत ना हार
कवि अपनी कविता को साथ ले
बाहर निकल गया
पहले कवि ने थाम रखी थी
कविता अपनी हथेली में
फिर भर बाज़ार वह चलता रहा
उसकी उंगली पकड़ कर
उसके बाद खिंचती चली गई
कविता की लंबाई
अब कविता हो गई उस से भी लंबी
जहां भी जाए कवि
सब हो जाते सावधान
दिख जाती सबको
कवि से पहले उनकी ओर बढ़ी
चली आती कविता…
हैरत में है कवि
रास्ते पर चले वह तो
खाली हो जाते रास्ते
मंच पर चढ़े
तो हो जाता हॉल खाली
घर में रहती वही
बीवी की शिकायतें और
चिल्ल पौँ बच्चों की
उसके और उसकी कविता के लिए
कहीं कोई मौजूद नहीं…