दीप्ति सारस्वत प्रतिमा

जब जब कोई
किसी भी बात के लिए
दिल से कहता है ‘हां’
गर्दन हिला भरता हामी
तब तब चेहरे पर उसके
हामी के साथ साथ फैल जाती
एक सुकोमल स्निग्ध मुस्कान,
चमक उठती आंखें
दमक उठता चेहरा
और स्वीकृति के साथ,
खुल जाता
अपार संभावनाओं का
एक नया द्वार…

जब कहना होता है
किसी को भी ‘ना’,
मनाही
आने से पहले ज़ुबान पर
बुझ जाती हैं आंखें
चेहरा हो जाता कठोर
आवाज़ रूखी सूखी कड़क
और एक शब्द ‘नहीं’ कह कर
भिंच जाते होठ
के साथ ही
भिड़ जाता
अनंत संभावनाओं का द्वार…

 

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