बुलंदियां: डॉ. कमल के. प्यासा

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डॉ. कमल के. प्यासा

बुलंदियां छूना
ऊंचा उठाना,
अच्छा लगता है
खुद को, सब को!
बुलंदियां बढ़ाती हैं,
दूरियां और फासले!
जिनसे पनपते हैं भरम
नजरों के,
और बदल जाते हैं
स्तर देखने के!

बुलंदियों को
यथा रखने के लिए,
एकाग्र होना पड़ता है,
ध्यान साधना पड़ता है,
और संतुलन रखना पड़ता है!
एकाग्रता खो जाने से,
ध्यान हट जाने से,
संतुलन बिगड़ जाने से,
धड़ाम से गिरना पड़ता है!

बुलंदियों को
बदल के रखती हैं,
परिस्थितियां!
यही नियम है प्रकृति का,
विज्ञान का!
परिवर्तन होता है,
ऐसा ही चलता है,
ऊपर से नीचे,
नीचे से ऊपर,
प्रकृति का चक्र चलता है!

बुलंदियों की
दूरियां,
आकर्षण (बल) पैदा करती हैं,
बल से वेग बढ़ता है,
क्रिया प्रतिक्रिया होती है
(न्यूटन की गति के नियमानुसार)
बुलंदियां ढह जाती हैं,
यथा स्थिति आ जाती है!

बुलंदियां
भूला देती हैं,
औकात और यादाश्त,
अंतर फासला आ जाने से!
दूर से बौने दिखते है सब,
भेद फर्क आ जाने से,
यथा स्थिति आती है तब!

Daily News Bulletin

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