उमा ठाकुर, शिमला
सैंटा क्लाज पोटली समेटे,
घूम रहा है शहर–शहर, गाँव–गाँव, गली-गली में,
तौहफ़ों का अंबार यिशु का प्यार लिए ।।
शहर-शहर सैंटा बना क्रिसमस पार्टी की शान,
बाँट रहा है तौहफ़े, काटे जा रहे हैं क्रिसमस केक,
जगमगा रहा है क्रिसमस ट्री ।।
गाँव की मुंडेर पर भी, बच्चे मना रहे हैं क्रिसमस,
सुना रही है दादी माँ,
कहानी यिशु के बलिदान की ।।
फुटपाथ के कोने में दुबके,
नंग-धड़ंग बच्चे, माँ के आँचल से लिपटकर,
ठंड से बचने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं ।।
तभी एक राहगीर उन बच्चों को,
चाकलेट, टाफ़ियाँ, कुछ कपड़े, कंबल देकर,
फिर भीड़ का हिस्सा बन जाता है ।।
चिल्लाते हैं बच्चे मासूमियत से,
वो देखो,
सैंटा क्लाज़ जा रहा है ।।
उनकी मासूम मुस्कान,
खुले आसमा को,
किलकारियों से भर देती है ।।
दूर चल रही क्रिसमस पार्टी से,
शोरगुल होता है,
मैरी क्रिसमस, मैरी क्रिसमस ।।
अंधेरी स्याह रात माँ के आँचल में,
सतरंगी सपनों की चादर ओढ़े,
नई सुबह का एहसास कराती है ।।