Sitaram Sharma Siddharthसीताराम  शर्मा  सिद्धार्थ

कुत्ते कविता और मैं
हम तीनों साथ रहते हैं
सुबह होती है
मैं सोया पड़ा हूं
सबसे पहले  कुत्ते भौंक कर
भरते हैं वातावरण में चैतन्यता
मुझे जगाते हैं  उन्हें भी जगाते हैं जो अभी तक सोए हैं
आते हैं भीतर साष्टांग प्रणाम करते हैं
जो मैंने उनको कभी नहीं सिखाया
पूछ हिलाते मेरी छाती तक उछलते हैं
मेरी चाय के साथ ही होता है उनका ब्रेकफास्ट
कुत्तों के जागने के साथ ही
जाग जाता हूं मैं
कुत्ते नाश्ते के बाद फिर सो जाते हैं
मैं उठ कर बैठ जाता हूं
अलसाई सी जाग जाती है कविता
कविता ने भी कुत्तों से उछलना कूदना
निस्वार्थ प्रेम की अभिव्यक्ति
और यहां तक कि गुर्राना भी सीख लिया है
शुक्र है मैंने अभी तक भौंकना गुर्राना नहीं सीखा
शायद इसीलिए मैं थोड़ा सा अलग हूं
और थोड़ी सी अलग है कविता
पर हम सब अपनी अपनी विधा में निपुण है
वह गंध से ढूंढ सकता है बम
झांक सकता है आंखों के पीछे आभ्यंतर में
वह देख सकती है अंधेरों में
चीख सकती है  बेआवाज़
वह रखती माद्दा हंसते को रुलाने का
और रोते को हंसाने का
और मैं कर सकता हूं
इन दोनों को अथाह प्रेम !

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