रणजोध सिंह
गुप्ता जी की बयानबे वर्षीय माताश्री मृत्यु शय्या पर थी। पिछले चार-पांच दिन से उन्हें कई बार यह सोचकर जमीन पर लिटाया गया कि उनकी जीवन यात्रा समाप्त हो गई है। मगर फिर भी जितनी साँसे विधाता ने दी हो, उन्हें तो हर हाल में भोगना ही पड़ता है। शायद यही कारण था कि पिछले चार-पांच दिन से बिना कुछ खाए-पिए, बिना कुछ-कहे सुने और बिना हिले-डुले वह जीवित थी। जब डॉक्टर, हकीम और वैद्य हाथ खड़े कर देते हैं तो पंडित-मौलवी मैदान में उतर आते हैं। गुप्ता जी भी इसके अपवाद न थे।
तुरंत गांव के जाने-माने पंडित रामप्रसाद जी को बुलाया गया। उन्होंने उपाय बताया कि यदि विधि-विधान से पूजा पाठ की जाये और माता जी के हाथ से किसी ब्राह्मण को गाय दान करवाई जाए, तो ही इनकी सद्गति होगी।
गुप्ता जी ने पंडित रामप्रसाद जी को ही इस विशिष्ट पूजा करने की प्रार्थना की। पंडित जी ने तुरंत अपनी सहमती देते हुए कहा, “मैं पूजा की तैयारी करता हूं आप गाय-दान का प्रबंध कीजिए। गुप्ता जी निशचिंत होकर बोले, “आप चिंता न करें, मेरे पास तीन गाय हैं, आपको जो भी पसंद हो ले लीजिए, मगर मेरी माता जी की पूजा में कोई कमी न हो।” पंडित जी हँसते हुए बोले, अरे! यजमान जी, इस उम्र में मैं यह गाय लेकर क्या करूंगा, इसकी देखभाल कौन करेगा? तुम ऐसा करो अपनी हैसियत मुताबिक मुझे सोने या चांदी की एक छोटी सी गाय दान कर दो। इससे तुम्हारी पूज्यनीय माता जी की सद्गति भी हो जाएगी और मैं भी गाय संभालने की परेशानियों से बच जाऊंगा।”
अब गुप्ता जी अपने पशुओं के बाड़े से एक गाय निकालकर ले जा रहे थे, गाय-दान का प्रबन्ध करने के लिए।