भीम सिंह, गांव देहरा हटवाड़, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ।
दुरगू से जब कोई उसके परिवार का कुशलक्षेम पूछता है तो उसकी आँखें भर आती हैं । दुरगू जिसने बड़ी मेहनत से, खून पसीना एक करके अपने बच्चों का पालन पोषण किया था और बहुत सारे सपने उन्हें लेकर बुने थे आज उनके लाडलों ने सब पर पानी फेर दिया है । दुरगू चाहता था कि उसके दोनों बेटे आपस में मिलजुल कर रहते और दुरगू के मार्गदर्शन मे अपनी जिंदगी का हर काम करते। कमाकर लाते। दुरगू के हाथ पर रखते ।
परंतु उनके दोनों ही बेटों ने इसके विपरीत अपनी मनमर्जी से हर कार्य किया । बात-बात पर आपस में लडते-झगड़ते रहे। सीमा तो तब पार हुई जब उस के बेटों ने अलग-अलग चूहे पर रोटी बनानी आरंभ कर दी । दुरगू ने दोनों बेटों को बहुत समझाया और कहा कि अभी आप दोनों इकट्ठे रहकर कुछ थोडा बहुत कमा लो । फिर मैं अपने हाथों से तुम दोनों को अलग कर दूंगा । आज हमारे पास चार कमरों का एक ही मकान है जिसे मैं ही जानता हूं कैसे बनाया है । आज अगर इसे मैं आप दोनों में बाँट दूं तो हम बूढा़-बूढी कहां रहेंगे ।
आप लोगों का भी तो दो कमरों में अपने परिवार के साथ गुजारा नहीं होगा । आज मैं जिन्दा हूं यदि तुम दोनों बेटे मेरे पास कुछ कमाकर दो तो मैं तुम दोनों के लिए अलग-अलग अच्छे मकान बना कर दे दूंगा । फिर मजे से अपने परिवारों के साथ वहां रहना। परंतु उन दोनों पर किसी के भी समझाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। आखिर दुरगू को उन्हें अलग-अलग करना ही पड़ा । दुरगू इस बंटवारे से टूट गया और सबसे बड़ा धक्का तो उसे तब लगा जब उसके इन बेटो ने बीच आंगन में ही दीवार खड़ी कर दी तथा दुरगू व उसकी धर्म पत्नी को भी आपस में बांट लिया। आज दुरगू को उसके बेटों द्वारा खड़ी की हुई यह दीवार दिन रात बुरी तरह चुभ रही है घायल कर रही है परंतु रोने के अतिरिक्त वह कर भी क्या सकता है ।