भीम सिंह, गांव देहरा हटवाड़, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ।

इक चींटी पैरों तले आई
जिंदगी के लिए कितनी छटपटाई
मेंने उसे यूं मरते देखा
जीने के लिए संघर्ष करते देखा
मौत आनी थी फिर भी आई
वह न चीखी न चिल्लाई
उसका मृत शरीर मेरे सामने था पड़ा
जो एक प्रश्न कर गया था खड़ा
मुझे भी एक दिन यूं ही मरना है
विन प्राण चींटी की तरह धरा पर पड़ना है
वह थी चींटी
हम हैं इन्सान
मौत का नाम सुन
हो जाते हैं परेशान
जबकि सब जानते हैं
मौत इक बहाना है
एक दिन हम सबको
यहां से जाना है
सदा यहां कुछ नहीं रहा
आज बना वह कल ढहा ।

 

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