लघु कथा: फरिश्ता
डॉ. कमल के. प्यासाअब की बार वी.आई.पी. रोड को जानें के लिए मेट्रो में सड़क से ऊपर पैदल पुल बन गया था। बस से...
बेकार की बातें (लघुकथा)
रणजोध सिंहहर कवि मंच पर आते ही औपचारिकतावश सर्वप्रथम आयोजकों का धन्यवाद व तारीफ़ कर रहा था, विशेष रूप से मुख्य आयोजक की।...
रोटी माँ के हाथ की — रणजोध सिंह
रणजोध सिंह
श्यामली के बार-बार समझाने पर भी उसका पति निखिल अंतिम समय तक अपने बुजुर्ग माँ-बाप को यह न बता पाया कि वह सदा-सदा...
शिष्टाचार — रणजोध सिंह
रणजोध सिंह
भोला राम जिसे प्यार से गाँव के सभी लोग भोलू कहकर पुकारते थे, आरम्भ से ही न केवल कुशाग्र बुद्धि का स्वामी था...
संतुलन — रणजोध सिंह
रणजोध सिंह
शिमला जैसे सर्द शहर में, सर्दी की परवाह किये बगैर विनय अपने कमरे में बठकर कंप्यूटर के साथ माथा-पच्ची कर रहा था जबकि...
सोचता हूं किस पर क्या लिखूं — भीम सिंह
भीम सिंह, गांव देहरा हटवाड़, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेशसोचता हूं किस पर क्या लिखूं
हर एक यहां परेशान है
सारे जहां में घूम कर देखा
सुखी दिखा...