विवाह के लगभग तीन साल बाद केसरो अपने गांव की सबसे सुघड़ महिला जिसे सभी लोग प्यार से ‘मौसी’ कहते थे, से मिलने आई थी | अकसर बेटियाँ विवाह उपरांत हंसते हुए मायके आती हैं, मगर केसरो तो, मौसी से मिलकर ऐसे रोई जैसे उसकी दुनिया ही खत्म हो गई हो | पूछने पर उसने मौसी को बताया कि उसका पति एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति है और वह स्वयं नितांत अनपढ़ |
एक दिन उसके पति ने मेज पर रखी हुई किताबों में से किसी विशेष किताब को मंगवाया मगर उसके लिए तो वह काला अक्षर भैंस बराबर थी | जैसे ही उसके पति को पता चला कि वह अनपढ़ है, वह बहुत क्रोधित हुआ और तुरंत उसे उसके मायके छोड़ आया और आज तक लेने नहीं आया |
मौसी ने दो टूक शब्दों में अपना निर्णय सुना दिया, “यह एकदम तुम्हारे माता-पिता की गलती है, उन्हें विवाह से पहले तुम्हारे पति को साफ-साफ बताना चाहिए था कि तुम अनपढ़ हो |”
केसरो और भी ऊंचे स्वर में रोने लगी | मौसी ने अगले ही क्षण ढाढ़स बंधाते हुए सोम्य शब्दों में कहा, “खैर, घबराने की बात नहीं है, अभी भी दुनिया खत्म नहीं हुई है | तेरे पति को यही शिकायत है कि तुम्हें पढ़ना लिखना नहीं आता, तो क्या पढ़ना लिखना शुरू कर दो |” मौसी एक क्षण के लिए रुकी और फिर बोली, “पिछले तीन साल से पति वियोग में रो रही हो, इससे अच्छा होता एक कायदा ले लेती तो अभी तक तुम्हें अच्छा खासा अक्षर ज्ञान हो जाता | मैं तुम्हारी बात स्कूल वाली बहन जी से करवा देती हूं उसके पास नित्य प्रति एक घंटा लगाया करो तब कुछ बात बनेगी | यों रोने धोने से कुछ नहीं होगा |”
मौसी की बातें भले ही कड़वी थी मगर सच्ची थीं, और केसरो के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाली थी |
एक साल बाद केसरो के पति को एक पत्र मिला जिसको देखकर वह दंग रह गया क्योंकि यह पत्र भले ही टूटी-फूटी भाषा में था मगर केसरों ने स्वयं लिखा था | उसने पति को स्पष्ट किया, “मैं हर प्रकार के घरेलू कार्यों में दक्ष हूँ | मेरा दोष केवल इतना है कि मुझे पढ़ना-लिखना नहीं आता | मगर अनपढ़ता कोई ऐसी कमी नहीं है जिसको दूर न किया जा सके | वैसे मैंने पढ़ना लिखना शुरू कर दिया है और यदि आपका मार्गदर्शन मिला तो मैं अनपढ़ता के दाग को पूरी तरह मिटा दूंगी |”
कुछ दिन बाद उसका पति उसके घर में था | आते ही उसने अपने व्यवहार के लिए के केसरो से माफी मांगी और उसे आगे पढ़ाने का वायदा कर अपने साथ ले गया |
अब केसरो निकल पड़ी थी अपने पति संग एक नई उड़ान भरने के लिए |