डॉ. कमल के. प्यासा
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यादें
याद आती हैं
जाती नहीं,
याद ही रह जाती हैं
जिंदगी भर!
यादें
यादों में रह कर
आती हैं सताती हैं,
कमबख्त तरह तरह की
फितरतें दिखा,
खूब यादों की
धूम मचाती हैं!
यादें
बिखरती हैं,
बिखर के बिसरती हैं
बालू के कण कण की तरह
बन किरक,
खलल डालती हैं!
यादें
सिमटती नहीं
फैलती चली जाती हैं
अंधेरों में रोशनी बन,
अंतर मन के हर कोने में
खुद जगह बनाती हैं!
यादें
रिश्तों की,
अपनों की बेगनों की
प्यारे चांद से चेहरों की,
दिलों ही दिल से
खुद गांठ लेती हैं!
यादें
तड़पाती हैं
दहलाती हैं सहलाती हैं
नीद तक उड़ा ले जाती हैं,
घोल के खट्टास वह कड़वाहट
निकाल ले जाती है
खुनस जमाने भर की!
यादें
यादों के झरोखों से,
झांकती भांपती हैं,
बनती हैं आईना
जीवन का,
और धुंधला जाती है!