सारा घर अस्त-व्यस्त था| सदा खिलखिलाने वाली रूपा, आज कुंभलाई सी लग रही थी| किचन में जूठे बर्तनों का ढेर लगा हुआ था| रूपा को समझ नहीं आ रहा था कि वह खाना बनाए, बर्तन साफ करें या झाड़ू पोछा| कामवाली बाई बिना बताए पिछले तीन दिन से नहीं आ रही थी| मन ही मन कामवाली को कोसते हुए सोचने लगी, ‘यह कामवाली भी किसी काम की नहीं, महीने में चार-पांच छुट्टियां तो कर ही लेती है| मैंने इसकी तनख्वाह से कभी एक पैसा तक नहीं काटा, आने दो इस बार इसकी अच्छी खबर लूंगी| तीन दिन की तनख्वाह तो काट ही लूंगी, महारानी खुद को समझती क्या है?’
तभी कामवाली उदास सा चेहरा लेकर दबे पांव किचन में आ गई| आते ही लगभग रोते हुए बोली, “बीवीजी मेरा छोटा बेटा बिट्टू तीन दिनों से बीमार है, आज जब हद हो गई तो बिट्टू के पापा उसे अस्पताल लेकर गए हैं| इस बीच मैंने सोचा मालकिन परेशान हो रही होगी, तो आपसे मिलने चली आई|” रूपा का सारा गुस्सा काफूर हो गया और उसने तुरंत कामवाली के लिए अदरक वाली चाय बनाई| चाय पीने के बाद कामवाली ने बर्तन धोने आरंभ कर दिए और रूपा अपने पर्स से एक हज़ार रुपए लेकर कामवाली से बहुत ही मधुर स्वर में बोली, “ये काम-वाम छोड़, ये कुछ पैसे हैं, रख ले, तेरे काम आएंगे, पहले जाकर अपने बेटे को देख….”
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