डिम्पल ठाकुर

हरी -भरी ये धरती
दुल्हन जैसी नज़र आए
जिस और कदम बढ़ाउं
वो अपना आँचल उड़ाए
हवा का एक झौंका
दिल को छू जाए
मिठी सी धूप से
तन मन भीग जाए
नदी किनारे बैठा माझी
गीत कोई सुरीला गाए
बसंत के आगमन पर
झूमे पंछी कोयल गाए
भंवरा फूल फूल मंडराए
कल कल करते झरने
धुन कोई मीठी गाए
आंखे देखे सपने पिया के
दिल ही दिल मुस्कुराये ।

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2 COMMENTS

  1. यह खूबसूरती सिर्फ हिमाचल में ही है। इसीलिए हिमाचली कविताओं में इनका वर्णन है। बेहद खूसूरत।

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