मंदिर लक्ष्मी नारायण
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा 108 / 6 समखेतर . मण्डी 175001 हिमाचल प्रदेश

ज़िला मंडी के पनारसा कस्बे से लगभग तीन चार किलोमीटर आगे ऊपर की ओर, पनारसा ज्वालापुर मार्ग के गांव किगस की सड़क से 50-60 मीटर ऊपर की ओर मंदिर आ जाता है।पहाड़ी शैली में बने इस छोटे मंदिर के ,छोटे से परिसर का प्रवेश द्वार जो कि लकड़ी का ही बना है आकार में यही कोई 8 फुट गुणा 4 फुट का ही है।इस द्वार को (वर्षा पानी व मौसम के प्रभाव से बचाव के लिए)बड़े ही सुंदर ढंग से ढलवां बनावट वाली स्लेट टाईल की छपरायी से छत्ता देखा जा सकता है।द्वार के दोनों ओर के थामों पर एक एक सुंदर सांप की आकृति को उकेर कर सजाया गया है।

सांपों के अतिरिक्त द्वार की सजावट में बेल बूटे व ऊपर की ओर लटकती लकड़ी की झलरें भी देखी जा सकती हैं। परिसर प्रवेश द्वार के आगे मंदिर का अपना छोटा सा आंगन व मुख्य मंदिर आ जाते हैं।छोटे से गर्भ गृह वाले इस(लकड़ी से निर्मित)मंदिर में लकड़ी की कारीगरी देखते ही बनती है।गर्भ गृह के छोटे से प्रवेश द्वार की चौखट के दोनों ओर के थामों पर(बाहर के प्रवेश परिसर द्वार की तरह)भी एक एक सुंदर उकेरी हुई सांप की आकृति दिखाई गई है।चौखट के ऊपर ठीक मध्य में देव गणेश को बैठी मुद्रा में उकेरा गया है।आगे फिर देव गणेश के दोनों तरफ एक एक अन्य देव आकृति को दिखया गया है।

सजावट के लिए ही चौखट के दोनों तरफ देव आकृतियों के अतिरिक्त कुछ एक पशु पक्षी व बेल बूटों को भी बनाया गया है।मंदिर की चौखट पर लगे द्वार पल्लों का आकार 2.5 फुट गुणा 1.5 फुट का है।इसी गर्भ गृह के चारों तरफ छोटे से प्रदक्षिणा पथ की भी व्यवस्था बनी है।इस तरह समस्त मंदिर कुल मिला कर 8 लकड़ी के स्तम्भों पर टिका है।अंदर गर्भ गृह में भगवान विष्णु की मुख्य शिला प्रतिमा के साथ ही साथ कुछ एक देवी मां की शिला प्रतिमाएं भी रखी देखी जा सकती हैं। देव लक्ष्मी नारायण जी के इस मंदिर परिसर में कुल मिला कर लगभग 30 शिला प्रतिमाएं देखी गई हैं।

जिनका विवरण इस प्रकार से किया जा सकता है:अर्थात मंदिर परिसर वाले छायादार वृक्ष के समीप जो तीन शिला प्रतिमाएं देखी गईं ,उनमें से दो तो खंडित अवस्था में(एक का शीर्ष भाग व दूसरी का निम्न भाग खंडित) हैं और दोनों आकर में 2.5 फुट गुणा 1.5 फुट की हैं।तीसरी प्रतिमा 1.5 फुट गुणा 3/4 फुट की देखी गई है।परिसर की सभी प्राचीन शिला प्रतिमाओं को देखने से आभास होने लगता है कि अतीत में यहां कोई प्रचीन मंदिर रहा होगा क्योंकि इतनी भारी संख्या में प्राप्त यह समस्त शिला प्रतिमाएं मूर्तिशास्त्र की दृष्टि से 300-400 वर्ष प्राचीन ही दिखती हैं।

प्रदक्षिणा पथ व नीचे आंगन की प्रतिमाओं का ब्योरा इस प्रकार से है: भगवान विष्णु से संबंधित प्रतिमाएं:परिसर में भगवान विष्णु की कुल मिला कर 11 प्रतिमाएं देखी गईं ,जिनमें से तीन शिला प्रतिमाएं तो अस्पष्ठ व क्षारित अवस्था की देखी गई,इनमें भगवान विष्णु जी के नीचे की ओर सेवक व ऊपर की तरफ देव(परियों) की आकृतियां देखने को मिलती हैं।इन सभी प्रतिमाओं में से दो प्रतिमाएं 1.25 फुट गुणा 1.00 फुट की तथा एक 1.00 फुट गुणा 10 इंच की देखी गई हैं ।शेष बची 8 ओं, भगवान विष्णु की प है।

गद्धा व कमल फूल को दिखाया गया है।इन सभी प्रतिमाओं में भी भगवान विष्णु के साथ देव आकृतियों, परियों व वाहन गरुड़ को भी दिखया गया है तथा आकर में तीन प्रतिमाएं क्रमश 1.00 फुट गुणा 10 इंच की, 5 प्रतिमाएं 3 फुट गुणा 2.5 फुट की, एक प्रतिमा 2.25 फुट गुणा 1.5 फुट की, एक दूसरी 1.5 फुट गुणा 10 इंच की,एक अन्य 2 फुट गुणा 1 फुट की व अंतिम 1 प्रतिमा 1फुट गुणा 5 इंच की देखी गई है। परिसर में देखीं गई अन्य प्रतिमाओं में आ जाती हैं:देवी मां शक्ति की 6 प्रतिमाएं, जिनमे से 4 अस्पष्ठ व क्षारित देखी गई हैं और ये आकर में एक 2.5 फुट गुणा 1.5 ,फुट की व तीन 1 फुट गुणा 10 इंच की ,देवी महिषासुरमर्दनी की देखी गई हैं।

दो प्रतिमाएं हस्थीवाहिनी देवी लक्ष्मी की (षष्ठभुजा)जो कि आकर में 2 फुट गुणा 1.5 फुट की तथा एक अन्य महिषासुरमर्दनी की 1.25 फुट गुणा 9 इंच की देखी गई है । परिसर में देखी गई अन्य व त्रिमूर्ति(ब्रह्मा विष्णु महेश),आधार चौकी शिवलिंग आदि आदि।देखा जाए तो किंगस के इस लक्ष्मी नारायण मंदिर की समस्त प्राचीन प्रतिमाएं मूर्तिशास्त्र के अनुसार अपने आप में परिपूर्ण ,सुन्दर व अलंकृत पाई गई हैं।इसी मंदिर के समीप 40 -50 मीटर की दूरी पर देव लक्ष्मी नारायण का भंडार गृह भी बना है,जिसमें देव लक्ष्मी नारायण जी की अष्ट धातू के मोहरे(मुखोटे),वाद्य यंत्र व देव रथ का अन्य सामान आदि रखा रहता है।भंडार गृह के इसी क्षेत्र में नाग पंचमी के दिन एक भारी मेले का भी आयोजन किया जाता है,जो कि रात भर चलता है।

इसी मेले में लोगों द्वारा रोग -बीमारी का उपचार ,जादू टोना,पशु रोग उपचार व अन्य दुख दुविधाओं के उपचार सम्बन्धी प्रश्न (पूछें) देवता के समक्ष डाले जाते हैं ,जिनका समाधान देवता के गुर (गूर)के माध्यम से बताया जाता है। समय के बदलते तेवरों व विकास गतिशील प्रगति के साथ ,जहां हर ओर बदलाव आया है , वहीं इस क्षेत्र(किगस गांव) में भी भारी सांस्कृतिक व सामाजिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं।नए नए लैंटर वाले भवन,मोटर गाड़ियां व पक्के रास्ते बन गए हैं।पुराने वाले लक्ष्मी नारायण मंदिर में भी भारी फेर बदल हो चुका है,कल न जाने क्या क्या होगा……।भगवान लक्ष्मी नारायण की कृपा सब पर बनी रहे।

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