दुनियां की आबोहवा और अर्थव्यवस्था पर गहन विचार करने के लिए हमें आलमी पी-30 सम्मेलन आयोजित करना पड़ा। एक बात यहां साफ कर दें कि इस सम्मेलन का किसी और सम्मेलन से कुछ लेना देना नहीं है। हालांकि हमारे पी-30 का रिश्ता हर बैठक, हर सम्मेलन, हर नेता, हर अभिनेता हर पत्रकार, हर नौकरशाह और हर आम- ओ- खास के साथ रहता है पर आधिकारिक तौर पर वे हमारे इस आलमी सम्मेलन का हिस्सा नहीं बन सकते और न ही हम उन्हें बनाते हैं। खैर हमने पूरी दुनियां से प्रतिनिधि बुलवाए, कुछ अपने विमान से आए कुछ अपने साथ 10 से 15 विमान लाए। इन विमानों में उनका सुरक्षा अमला था। क्योंकि हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर तो उन्हें रत्ती भर भी भरोसा नहीं था।
सम्मेलन में आए सभी प्रतिनिधियों ने एक सुर में कहा कि उनके देशों में उन्हें वो इज्ज़त नहीं मिलती जिसके वो अधिकारी हैं। इनमें विकसित, विकासशील, और पिछड़े हुए देशों के प्रतिनिधि शामिल थे। सभी ने कहा कि यदि हम न होते तो कोविड के समय में कोई अर्थव्यवस्था बचती ही नहीं। ये तो हम पी-30 वालों और हमारे साथियों के कारण बची है। इस पर कुछ प्रतिनिधि बोले कि हमारी छवि खराब होने के पीछे हमारे ही उन साथियों का हाथ है जो पी-30 का लक्ष्य छोड़ 60 या 90 एम एल पीना शुरू कर देते हैं। इसके बाद सार्वजनिक स्थानों पर हुडदंग करके वे पी-30 के नाम को खराब करते हैं।
इसलिए सम्मेलन में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ के पी-30 का कोई भी सदस्य 30 एम एल से अधिक नहीं पिएगा और अगर पिएगा तो बाज़ार नहीं जायेगा और अगर बाज़ार जाएगा तो हुडदंग नहीं मचाएगा और अगर हुडदंग मचाएगा तो पुलिस के हाथ नहीं चढ़ेगा। मीडिया ने हमारे इस प्रस्ताव की भूरि भूरि प्रशंसा की। तथाकथित संपादकों ने 30 एम एल पी कर इसे हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि बताया। हमारा पूरा मीडिया लगातार इस पर डिबेट कराता रहा। अपने देश के देश के सारे शराबी हमारे साथ खड़े दिखे। हालांकि बोतल पीने वालों को काफी ऐतराज़ था पर जब उन्हें पता चला कि पी-30 के सदस्य ड्राई डे वाले दिन भी पी सकेंगे तो उनकी खुशी की कोई सीमा नहीं थी।
इसके बाद बात आई सभी मयकशों को इज़्ज़त देने की। सभी ने कहा कि जो लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर इसलिए पीते हैं ताकि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो तो वो उनसे कम नहीं जो देश पर अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं। इसलिए उन्हें भी मरणोपरांत बहादुरी का मेडल और परिवार को पेंशन मिलनी चाहिए। शराबियों और मयखानों की दूसरी खूबी यह है कि ये सभी पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष हैं। यहां पीते समय जात धर्म नहीं देखे जाते। सब एक साथ बैठ कर पीते हैं। इससे समाज में आपसी भाई चारा और सौहार्द बढ़ता है।
मयखाने या ठेके अंधविश्वासों को तोड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। ठेके की ईमारत बनाते समय किसी महूरत या वास्तुशास्त्र की कोई जरूरत नहीं होती। जिधर चाहे दरवाज़ा रख दो, चाहे जिधर खिड़की, जिधर चाहे अधिये रख दो जिधर चाहे बोतल सब शुभ है। शराबी ढूंढते हुए हर जगह पहुंच ही जाते हैं। सम्मेलन के अंत में हालांकि कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं हुई क्योंकि सभी प्रतिनिधि और संवाददाता 30 से अधिक पिए हुए थे इसलिए एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की गई जिसमें सभी प्रतिनिधियों ने देश, राजनीति, और जात धर्म से ऊपर उठ कर कहा कि पीना- पिलाना आम होना चाहिए और इसमें लिंग भेद खत्म करके महिलाओं की भागेदारी बढ़ाई जानी चाहिए। कुछ शायराना तबीयत के प्रतिनिधियों ने इसका भरपूर समर्थन किया। उनका कहना था कि महिलाओं के सामने पीने से उन्हें अच्छे शेर कहने और सुनने के अधिक अवसर मिलेंगे इससे हर देश में साहित्य का स्तर ऊंचा होगा।
इस पर एक प्रतिनिधि ने मीर तकी मीर का ये शेर पढ़ दिया:
” हम हुए तुम हुए मीर हुए
उनकी जुल्फों के सब असीर हुए”
असीर का मतलाब कैदी होता है।
इस पर तालियों की आवाज़ रुकी नहीं थी कि एक विद्रोही प्रतिनिधि ने यह शेर पढ़ा:
“रात को पी सुबह को तोबा कर ली
रिंद के रिंद रहे, हाथ से जन्नत भी न गई”
इस तरह पी-30 सम्मेलन खत्म हुआ। पर आयोजकों के लिए समस्या यह कि जिनकी अभी तक उतरी नहीं उन्हें उनके देश कैसे भेजें?
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