अभिमन्यु कमलेश राणाअभिमन्यु कमलेश राणा

उसे ढील दो
है पतंग की डोर जो
छूना चाहते गर आसमानों को

औरों को भी उड़ने दो
पेंच लड़ाने उलझे जो
थाम लोगे अपनी उड़ान को

सफर उन्हें भी तय करने दो
काट दी भी कुछ डोर जो
खींचोगे पतंग अपनी भी,नीचे को

इस बात पर भी गौर दो
डोर औरों को काटती जो
घिसती, कमजोर भी करती खुद को

असीमित है ब्रह्मांड
नया सीखने पर जोर दो
सुलझी होगी सोच जिसकी

लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करेगा जो
होगा चेहरे पर तेज अनुपम
पाएगा वही उत्कृष्टता को

उसे ढील दो
है पतंग की डोर जो
छूना चाहते गर आसमानों को ।

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