हिमाचल प्रदेश नशा निवारण बोर्ड के सलाहकार एवं संयोजक ओम प्रकाश शर्मा ने कहा है कि नशे के प्रकोप पर अंकुश लगाने के लिए राज्य मादक द्रव्य नीति तैयार की जा चुकी है। इसे शीघ्र जारी किया जाएगा। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाला यह बोर्ड समस्या से निपटने के बहुआयामी तरीकों को अपनाएगा। नशे के खिलाफ व्यापक जागरूकता अभियान 20 नवंबर के बाद शुरू किया जाएगा। उमंग फाउंडेशन के ट्रस्टी संजीव शर्मा के अनुसार आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में फाउंडेशन द्वारा मानवाधिकार जागरूकता पर साप्ताहिक वेबिनार में विख्यात विशेषज्ञ ओमप्रकाश शर्मा ने यह जानकारी दी। वह “नशे का प्रकोप, मानवाधिकार उल्लंघन और समाधान” विषय पर  व्याख्यान में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि नशा करने वालों को अपराधी की बजाए पीड़ित माना जाना चाहिए। इससे पूर्व उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष और राज्य मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के सदस्य प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि नशे और मानवाधिकार उल्लंघन के बीच बहुत गहरा संबंध है। उन्होंने अंतर्रष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिस्थितियों के संदर्भ में कहा कि जहां ड्रग्स होंगी, वहां मानवाधिकार उल्लंघन होना स्वभाविक है। विख्यात विशेषज्ञ ओमप्रकाश शर्मा ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर यह माना जा चुका है की ड्रग्स और दूसरे मादक पदार्थों का सीधा संबंध मानवाधिकार उल्लंघन से है। वेबीनार में लगभग 75 विद्यार्थियों एवं युवाओं ने हिस्सा लिया।

उन्होंने बताया कि प्रदेश के 12 में से 10 जिले नशे की चपेट में हैं। यही नहीं, राज्य में हर वर्ष 300 टन चरस और 10 टन हेरोइन का अवैध उत्पादन होता है। सीमा पार से बड़ी मात्रा में सिंथेटिक ड्रग्स भारत और हिमाचल समेत कई राज्यों  में लाई जाती है। प्रदेश को नशा मुक्त बनाने के लिए राज्य सरकार पुरजोर प्रयास कर रही है। ओमप्रकाश शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता वाले नशा निवारण बोर्ड ने राज्य की समेकित मादक द्रव्य निवारण नीति (Integrated Drug Prevention Policy) तैयार कर दी है। इसे शीघ्र ही जारी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के मार्गदर्शन में तैयार किए गए नीति दस्तावेज में नशे की बुराई से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति का विस्तृत विवरण है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के एक दस्तावेज के अनुसार देश के 272 जिले बुरी तरह नशे की चपेट में हैं। उसमें हिमाचल के मंडी, कांगड़ा और शिमला जिले ही शामिल किए गए हैं। जबकि राज्य के 12 में से सात अन्य जिलों में भी नशाखोरी की समस्या गंभीर हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश के 32 प्रतिशत  युवा नशे की चपेट में आने के कगार पर हैं। उन्होंने बताया कि पुनर्वास केंद्रों में भर्ती लोगों में 37 प्रतिशत चिट्टा और 36 प्रतिशत शराब के आदी हैं। प्रदेश में लगभग 65 नशा निवारण केंद्र हैं जो निजी संस्थाओं द्वारा संचालित हैं। इनमें से ज्यादातर गैर प्रोफेशनल ढंग से चल रहे हैं और उनमें मानवाधिकारों का उल्लंघन भी होता है। हिमाचल में ड्रग्स की  समस्या पिछले 30 वर्षों में सबसे ज्यादा बढ़ी है।

नशा निवारण बोर्ड के सलाहकार ने कहा कि प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में दवाई बनाने के 129 कारखाने हैं। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब वहां बनी दवाएं नशे के बाजार में पहुंचा दी गईं। उन्होंने कहा कि ड्रग्स का कारोबार आतंकवाद की जड़ें भी मजबूत करता है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान समेत कुछ अन्य देश मादक पदार्थों की खेती और व्यापार से हुई कमाई को आतंकवाद फैलाने में खर्च करते हैं। पड़ोसी राज्य पंजाब के हालात सबके सामने हैं। युवा वर्ग को सावधान रहने के साथ-साथ सजगता से नशा निवारण बोर्ड एवं अन्य एजेंसियों को नशे की तस्करी एवं उपयोग के बारे में जानकारी देनी चाहिए। उनसे मिली सूचना को गोपनीय रखा जाएगा। ड्रग्स की समस्या के समाधान के बारे में उन्होंने कहा कि प्रस्तावित नीति दस्तावेज में अन्य बातों के अलावा यह भी कहा गया है कि युवाओं में खेल गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके अलावा आठवीं कक्षा से ऊपर के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में भी नशे की बुराई से बचाव की जानकारी दी जाएगी। उनका कहना था कि योग, मेडिटेशन, पुस्तकें पढ़ना और ऐसी ही अन्य स्वस्थ गतिविधियों में खुद को शामिल कर युवा ड्रग्स की बुराई से बचे रह सकते हैं। मानवाधिकार जागरूकता पर उमंग फाउंडेशन के साप्ताहिक वेबीनारों की श्रंखला में यह सातवां कार्यक्रम था। इसके संचालन में विश्वविद्यालय के पीएचडी के विद्यार्थियों मुकेश कुमार और अभिषेक भागड़ा के अलावा संजीव शर्मा और डॉ. सुरेंद्र कुमार ने सहयोग दिया

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