Tag: bards of hills
मैं, इस बात से अनजान, अनभिज्ञ — नवनीत कालिया
नवनीत कालिया, शिमला
कितना कुछ था ज़िन्दगी में, जब covid नहीं था।
Covid, इतना बेरहम, इतना निर्देयी।
मैं, इस बात से अनजान, अनभिज्ञ।।
बस, अपनी मासूमियत में, इस covid से लड़ने चला।
बिन सोचे, लड़ाई भीतर...
ज़िंदगी…जी भरके अभी जीना है इसे! — नीलम भट्ट
ज़िंदगी को, उसके हर पल को जी भरके जीना ज़रूरी है... और यह बात जितनी शिद्दत से इस समय महसूस हो रही है, शायद ही कभी हुईं होगी।
https://youtu.be/Lb0AFh418k8
Neelam Bhatt, born in...
अपना खयाल रखना — दीप्ति सारस्वत प्रतिमा
दीप्ति सारस्वत प्रतिमा
अपना खयाल रखना
अपना खूब खयाल रखना
अपनों की मिठास घुली
औपचारिक आवाज़ें
वरिष्ठ नागरिक के
कानों में गूंजती
जब - जब वे
अपने घर में अकेले
तकलीफ़ में होते हुए भी
बनाते जैसे तैसे खाना
रात सोने से...
यह समय — नीलम भट्ट
This time is the best and the worst of times. The poem sums up whatever was felt during the Corona pandemic. The time when we could connect with our near and...
Zindagi Khubsurat Hai — Neelam Bhatt
All of us go through difficulties in our life...ups and downs. The dark phases when we tend to feel lonely. But there has to be something, someone to give us hope....
Water — Poem by Vedanshi Sharma
https://youtu.be/WQA5voa03E4
Vedanshi Sharma of Class 2, Saraswati Paradise International School Shimla, Village Kotgarh, share a sweet narration on the importance of Water.
मनमोहन शर्मा के काव्य संग्रह “उदगार” का विमोचन
उमा ठाकुर, कीकली ब्यूरो, 20 अक्टूबर, 2020, शिमला
हिमाचल प्रदेश कोष लेखा एवं लॉटरीज़ विभाग में कार्यरत वरिष्ठ सहायक मनमोहन शर्मा द्वारा रचित प्रथम काव्य संग्रह "उदगार" का विमोचन माननीय अनिल कुमार...
रेडियो सखी — मित्र् दिवस पर विशेष
उमा ठाकुर, शिमला
विविध भारती का सखी सहेली
कार्यक्रम हो या आकाशवाणी
शिमला का महिला सम्मेलन.
हर सक्रिप्ट में छुपी
अनगिनत कहानियाँ
कुछ अनकही,अभासी,
तितली सा रंग
जिन्दगी में बिखेरती
कभी रिश्तों की डोर सहेजती.
स्टूडियो में बैठी सखी
मधुर गीत चुनने...
माँ को नमन
उमा ठाकुर, शिमला
नमन माँ के जज़्बे को
जो मासूम धड़कन
बचाए रखना चाहती है
उस नरपिशाची सोच से
जो है आतुर सांसों को घोंट
गटर में फैंकने को ।
नमन माँ की ममता को
जो शहादत पर बेटे...
हाशिए पर खड़ा आदमी
अशोक दर्द
हाशिए पर खड़ा आदमी,
धूप मे झुलस जाता है मूक होकर,
क्योंकि यह सूरज के खिलाफ विद्रोह करना नहीं जानता,
यह हवा के खिलाफ,
बगावत नहीं करना चाहता,
क्योंकि इसे हवा का न तो रुख...