सीताराम शर्मा सिद्धार्थ, शिमला

तुंग शिखर पर
बैठा यौवन
फैलता तिलिस्म
वांछा प्रतिपल
मनोवांछित उत्कर्ष
स्वप्नलोक की छाया
ऊष्ण तन
सूर्य चंद्र की रक्तिम आभा
घनगर्जन उर का स्पंदन
मनका मनका माला खंडित
मन का क्षोभ
मन ही समझ न पाया I

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