डॉक्टर जय अनजान
डॉक्टर जय अनजान

हिंद देश की नारी हूं,
वंदन से है मेरी पहचान,
सब रिश्ते हैं मेरी वजह से,
यही तो है मेरी पहचान।
मत करना भूल समझ के मुझको अबला,
मैं आधुनिक भारत की नारी हूं,
देश के लिए जीती मरती हूं,
है मेरे लिए मेरा देश मेरी पहचान।
बीत गया वो दौर जब मेरी पहचान चार दिवारी थी,
पुरुष प्रधान समाज में उस वक्त मैं अबला और बेचारी थी,
पढ़ना लिखना मुझे न सिखाया गया उस वक्त,
कहते ये तो तौहीन तुम्हारी थी।
मैं आज के हिंद देश की नारी हूं,
राजनीति ,पढ़ाई और किसी क्षेत्र में पीछे नहीं अब मैं,
खुद लड़ाकू विमान चलाती,
हवाई जहाज की करवाती सबको सवारी हूं।

आधुनिक भारत की नारी: डॉक्टर जय अनजान

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