पेट : डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

नर या मादा
काली या सफेद
दोनों ही मैं मैं करती हैं।
नादान कट जाने से पहले
खुद ही सिर आगे करती हैं !
भेड़ें ऐसे ही मरती हैं !

भेड़ें, चल के समूह में
इक दूजे के पीछे
भेड़ चाल का
अनुसरण करती हैं !

भेड़ें, पेट की आग बुझाने
आंखों की भूख व संतुष्ठि मिटाने
हरा मुलायम चारा चरती
कहां कहां भटकती है !

भटकती भेड़ों को सहलाने,
गर्मी का प्रकोप बढ़ते ही
सैलानियों के संग संग
कुछ मुखौटा धारी भेड़िए और
(बहुरूपिए बहुआयामी)मदारी
पहाड़ों का रुख करते हैं !

भेड़ें, गर्मी सर्दी, वर्षा पानी
तपती धूप, भूख प्यास,
सब कुछ भुला के
भेड़िए के चंगुल में फंस,
मदारी के अद्भुत तमाशों व
चमत्कारों से निहाल होती हैं!

शांति स्वरूप भेड़िया
अपनी मधुर लुभावनी वाणी से
सम्मोहन कर मोह लेता है,
बुदबुदाता भेड़ों के कानों में
सुख शांति के चमत्कारी शब्द
और बंटता जाता बीज मंत्र ,
भेड़ की कद काठी व स्थितिनुसार

और देता जाता चुपके चुपके
गुप्त दैविक प्रतीक ! बंटा जाता प्रसाद
खतम होता समागम
खेल मदारी का !
भेड़े बिखर जाती हैं,
अलग अलग झुण्डों में
इधर उधर अपने अपने गंतव्यों की ओर !

बोरिया बिस्तर
समेट लेता है बहुरूपिया
बहुआयामी भेड़िया
मुखौटा धारी मदारी,
भरता है झोली और
गठरी उठा चल देता है
बचे खुचे मुलायम चारे (प्रचार सामग्री) के साथ
अगले गंतव्य की ओर
कुछ नई और पुरानी
भेड़ों की टोह में !

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