डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

कैसे कैसे होते हैं ये चम्मचे ?
चापलुसियो की ही खाते हैं ये चम्मचे !
चम्मचागिरी मेंअव्वल होते हैं ये
चम्मचे!
दुवा सलाम करते नहीं थकते ये चम्मचे!
कभी रूठ जाते कभी मान जाते हैं
ये चम्मचे !
फिर भी चिपके देखे गए हैं ये चम्मचे !
कहीं बिगाड़ते सुधारते देखे गए हैं ये
चम्मचे !
यदि फूक मेंआ जाएं चम्मचे ये,
तो आकाश को भी जमी पे उतार लाए ये चम्मचे !
फिर कुर्सी पे भी बैठा के हार पहना दें ये
चम्मचे !
चाहे तो मिट्टी धूल चटा दे ये चम्मचे !
बच के रहना इनसे, भला ये तो ठहरे चम्मचे !
क्योंकि नहीं बक्शते किसी को ये चम्मचे !
कहीं मौसमानुसार बदलते हैं ये चम्मचे !
चढ़ते सूरज को सलाम करते हैं ये
चम्मचे !
वैसे तो भांत भांत के होते हैं ये चम्मचे,
कहीं सोने चांदी तो कहीं पीतल लोहे के ये चम्मचे !
वक्त वक्त पे ढलते देखे तुम व हमी यही चम्मचे !
खाते पीते डकारते देखे बहुतेरे ये चम्मचे !
कहीं नाचते तो कहीं नचाते देखे ये चम्मचे !
छोटे मोटे ,नाटे हल्के,टिड्डे फिड्डे जैसे देखे हैं ये चम्मचे!
कैसे कैसे फरमेदार होते हैं ये चम्मचे,
चापलूसी की ही तो खाते हैं ये चम्मचे !

चम्मचे (चम्मचों की कारगुजारी): डॉo कमल केo प्यासा

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