दोस्त दो प्रकार के होते हैं। एक, कमीने और दूसरे, महा कमीने। जो इस कैटीगरी में नहीं आते वो दोस्त नहीं होते। दोस्त एक खास प्रजाति होती है जो हर जगह पाई जाती है। आजकल तो इस ‘नसल’ के लोग सोशल मीडिया पर भी मिल जाते हैं। पर असली नसल तो गली, मुहल्लों में मिलती है। वहां मिट्टी, रेत में साथ खेलने, कपड़े गंदे करने और एक साथ मां बाप की मार खाने वाली पनीरी प्राइमरी स्कूल में किसी पौध की तरह रोपित हो जाती है। फिर सलेट- सलेटी, तख्ती – बस्ता, कैदा – किताब और रोशनाई – कलम के लिए लड़ते झगड़ते, शिकायतें लगाते सब दोस्त बन जाते हैं।
बड़ा अजीब होता है वो रिश्ता। सिवाए दोस्ती के उसे और क्या नाम दें। झूठ बोलने की अज़ीम कला भी इंसान दोस्तों से और दोस्तों के लिए सीखता है। क्लास में किसी एक की शरारत को छुपाने के लिए सारे दोस्त खुद मार खा लेते पर अपने दोस्त का नाम तक नहीं लेते। एक दूजे के घरों में बहाने बनाना, रिपोर्टकार्ड पे किसी के बाप के हस्ताक्षर कर देना, एक साथ बैठ कर पढ़ाई करने का झूठ बोल फिल्म देखने जाना, क्लास बंक करना और लड़कियों को देखना, वो शुरुआती ज्ञान है जो कोई भी बच्चा स्कूल में पाता है। यह संभव होता है कमीने दोस्तों की वजह से। कॉलेज तक आते आते दोस्ती और पक्की हो जाती है। वहां तो लोग दोस्तों के लिए डाकिए का भी काम करते हैं।
सबकी नजरों से बचा कर दोस्तों के प्रेमपत्र उस माशूका तक पहुंचना जो उस लड़के को पहचानती भी नहीं जो पत्र भेज रहा है। ऐसे काम किसी कमांडो एक्शन से कम नहीं होते। जान हमेशां जोखिम में रहती है। पर दोस्त के लिए करना पड़ता है। हॉस्टल में एक दूजे के कपड़े पहनना, दूजे का परफ्यूम लगाना, क्लास में प्रॉक्सी बोलना ऐसे काम दोस्त ही तो करते हैं। इतना ही नहीं अपनी जेब खाली होने पर दोस्तों के पैसों को अपना समझना पुरानी परंपरा है। इसके अलावा दोस्तों से ले कर पैसों का लौटना या ऐसा सोचना पाप और दोस्ती की तौहीन माना जाता है। पैसे लौटाने जैसा शब्द दोस्ती की किताब में नहीं होता। देखा जाए तो कर्ज़ के मामले में दोस्तों का आपसी रिश्ता वैसे ही होता है जैसे बड़े पूंजीपतियों और बैंकों का।
पूंजीपति भी कर्ज़ लेकर कहां चुकाते हैं? दोस्तों में कुर्बानी का जज़्बा कूट कूट कर भरा होता है। दोस्त को कहीं भी लड़ता देख सारे दोस्त उसकी तरफ से लड़ना शुरू कर देते हैं हालांकि उनको पता नहीं होता कि लड़ाई की बात पे है। इसी तरह अगर किसी लड़की के चक्कर में दोस्त को लड़की के भाई और रिश्तेदार पीट रहे हों तो भी दोस्त खुद बीच में घुस कर मार खा लेते हैं। भागते नहीं। हम खुद भी इस तरह कई बार पिटे हैं। पिटते समय उस दोस्त को कोसते ज़रूर हैं कि साले ने मरवा दिया। दोस्तों का चरित्र भी ऊंचा होता है। जिस लड़की पर किसी दोस्त की नज़र मात्र भी पड़ गई, वो किसी अध्यादेश की तरह ‘तत्काल प्रभाव’ से उनकी भाभी बन जाती है। दोस्त की बीबी बने न बने पर भाभी तो बन ही गई।
हर लड़के के प्रेम के रास्ते में एक खलनायक भी होता है। ऐसे खलनायक के साथ युद्ध में दोस्त इस तरह साथ देते हैं जिस तरह महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण ने पांडवों का और रामायण में किष्किंधा नरेश बानर राज सुग्रीव ने भगवान राम का। कई बार तो अपने युद्ध के बाद जब थाने में दरोगा के सामने बात खुलती है तो पता चलता है कि जिस को हम भाभी समझ युद्ध में कूदे थे वो तो उस खलनायक की प्रेमिका है जिससे हम युद्ध कर रहे थे। तब खुद पर और उस यार कमीने पर बहुत गुस्सा आता कि साले ने वैसे ही पिटवा दिया। यह सही है कि दोस्त कमीने या महा कमीने होते हैं पर उनके बिना जीवन भी कहां होता है। जिंदगी की शाम के वक्त जब सभी हमें ‘जी’, ‘जनाब’, ‘अंकल’, चाचा, ताया, या दादा बुलाना शुरू कर देते हैं तो ‘तूं’ कह कर बुलाने वाले वो दोस्त बहुत याद आते हैं।