उसे दिन मुझे नालागढ़ से अस्सी किलोमीटर दूर सोलन शहर में बस द्वारा एक आवश्यक मीटिंग में पहुंचना था| घर से बस स्टैंड का रास्ता जो लगभग एक किलोमीटर था, पैदल ही तय करना था| परंतु मुश्किल यह थी कि यदि निर्धारित बस छूट जाती तो अगली बस एक घंटे बाद मिलती| कुछ पारिवारिक उलझनों के कारण मैं घर से ही लेट चला था इसलिए मेरी चाल अन्य दिनों से काफी तेज़ थी| जैसे ही घर से निकला, एक काली बिल्ली भागते हुए आई और मेरा रास्ता काट कर चली गई, शायद उसे मुझसे भी ज्यादा जल्दी थी|
जैसे स्कूल में किसी कड़क पीटीआई के सावधान कहते ही बच्चे एकदम खड़े हो जाते हैं| ठीक वैसे ही सड़क पर चल रहे लोग काली बिल्ली को देखते ही सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए और इधर-उधर बगलें झाँकने लगे| पहले तो मुझे भी लगा कि मैं भी खड़ा हो जाऊं, क्योंकि लोगों से सुना था कि बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ होता है| मगर फिर याद आया कि अगर मैं ज़रा सा भी लेट हो गया तो बस छूट जाएगी और फिर मैं समय पर मीटिंग अटेंड नहीं कर पाऊंगा और मेरी दिन भर की सारी योजनाएं चौपट हो जाएगी|
अतः मैं न चाहते हुए भी तेज़-तेज़ क़दमों से अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा| मेरे चलते ही बाकी लोगों ने राहत की सांस ली और मंद-मंद मुस्कुराते हुए अपने-अपने गंतव्य की तरफ ऐसे निकले जैसे उन्होंने कोई बड़ा किला जीत लिया हो| इधर मेरे भीतर बैठे हुए रूढ़िवादी संस्कार जाने कब जिंदा हो गए और चीख-चीख कर कहने लगे, “इतनी बड़ी गलती कर दी, लोग तो सधारण बिल्ली के रास्ता काटने का भी अपशगुन मानते हैं, यहां तो आज काली बिल्ली ने रास्ता काट दिया, आज तो पक्का बस छूट जाएगी|”
मगर बस स्टैंड पर पहुंच कर पता चला कि बस अभी वर्कशॉप गई है| पहले वहां उसमे डीजल भरा जाएगा और फिर बस चलेगी| सोलन जाने वाली अनेक सवारियां बस के इंतज़ार में वहां खड़ी थीं| खैर! मेरे लिए यह खुशखबरी से कम न था, मैंने राहत की साँस ली| इतने में मेरे एक अभिन्न मित्र की नज़र मुझ पर पड़ गई जो अपनी निजी कार में वहां से गुजर रहा था| मुझे देखते ही उसने कार रोक दी और मुस्कुराते हुए पूछा, “आज सुबह-सुबह किधर जा रहे हो, वो भी बिना गाड़ी के?” मैंने उसे बताया कि मुझे एक जरूरी मीटिंग में सोलन पहुंचना है, मगर आज मेरे पास गाड़ी नहीं है|
उसने हुए चहकते कहा, “वाह क्या संयोग है! मैं भी सोलन जा रहा हूँ, आ जाओ गाड़ी में, खूब गुजरेगी जब मिल बैठेगे दीवाने दो|” यह कहकर उसने गाड़ी का फ्रंट डोर खोल दिया| अँधा क्या चाहे दो आँखें| मैं तुरंत कार में बैठ गया| मित्र के साथ रास्ता कब कट गया पता ही नहीं चला| मैं मीटिंग में निर्धारित समय से आधा घंटा पहले पहुंच गया| आयोजकों ने मुझे चाय पिला कर आदर-सहित प्रथम पंक्ति में बिठाया|
जब मीटिंग शुरू हुई तो मीटिंग में पहुंचे हुए सभी सदस्यों का औपचारिक स्वागत किया गया, मगर मंच-संचालक ने विशेष रूप से मेरी समय-पालन की तारीफ़ करते हुए मेरा नाम लेकर धन्यवाद किया और सभी लोगों को बताया कि जहां बहुत से स्थानीय लोग इस भीषण सर्दी के कारण मीटिंग में नहीं आ पायें हैं वहीं पर मैं अस्सी किलोमीटर का सफर तय करके भी निर्धारित समय से आधा घंटा पहले मीटिंग में पहुंच गया| सारा हाल तालियों से गूंज उठा| मैं मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देने लगा कि शुक्र है मैं काली बिल्ली के रास्ता काटने कारण शुभ-अशुभ के चक्कर में नहीं पड़ा, वर्ना जो सम्मान मुझे आज मिला, वह कभी नहीं मिल पाता|