मेधावी दिव्यांग छात्रा निकिता चौधरी का डॉक्टर बनने का सपना अब पूरा हो जाएगा। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा को उसे एमबीबीएस में प्रवेश देने का आदेश दिया है। उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि न्यायमूर्ति सबीना और न्यायमूर्ति सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने सोमवार को व्हीलचेयर यूजर निकिता चौधरी की याचिका पर फैसला देते हुए कहा कि अदालत के आदेश पर पीजीआई चंडीगढ़ के मेडिकल बोर्ड ने उसकी विकलांगता 78% प्रमाणित की है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के अनुसार 80% तक विकलांगता वाले विद्यार्थियों को एमबीबीएस में प्रवेश दिया जा सकता है। गौरतलब है कि कांगड़ा जिले की बडोह तहसील के गांव सरोत्री के निवासी राजेश कुमार और रंजना देवी निकिता ने पहले ही प्रयास में एमबीबीएस के लिए आयोजित नीट की कठिन परीक्षा पास कर ली थी। लेकिन टांडा मेडिकल कॉलेज अपने नियमों का हवाला देकर विकलांगता के कारण एमबीबीएस में दाखिला देने से इनकार कर दिया था।

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के अनुसार एमबीबीएस में प्रवेश के लिए विकलांगता प्रमाण पत्र उसके द्वारा अधिकृत मेडिकल कॉलेज या अस्पताल से बनवाना पड़ता है। चंडीगढ़ के सेक्टर 32 का राजकीय मेडिकल कॉलेज इसके लिए अधिकृत है। वहां निकिता को 78% विकलांगता का प्रमाण पत्र दिया गया था। लेकिन टांडा मेडिकल कॉलेज ने  फिर से उसकी विकलांगता का आकलन किया। और विकलांगता 78% से बढ़ाकर 90% कर दी ताकि वह एमबीबीएस में दाखिले की पात्रता से बाहर हो जाए। निकिता ने परेशान होकर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से लेकर के पिछली सरकार के आला अफसरों तक को पत्र भेजकर न्याय की गुहार लगाई। लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। अंत में उसने वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव भूषण के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने पीजीआई के निदेशक को आदेश दिया कि वह निकिता की विकलांगता का आकलन करके प्रमाणपत्र 9 दिसंबर तक सीधे कोर्ट में जमा कराएं। वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव भूषण की दलीलों पर सोमवार को हाईकोर्ट ने सहमति जताई और निकिता को एमबीबीएस में प्रवेश देने के आदेश दिए।

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