सुंदर कोटधार: रेखा चंदेल का अद्वितीय चित्र
रेखा चंदेल

मैं अक्सर बैठी रहती हूं, तुमको निहारने,
तुम कितनी सुंदर हो कोटधार,
कितने लोगों का आशियाना, बनाया है तूने अपने आंचल में,
कितने लोग लगे है ,
तुझसे अपनी रोजी रोटी कमाने,
मैं अक्सर बैठी रहती हूं, तुझको निहारने
जैसे ही बारिश की फुहार,
तुम पर पड़ती,
तुम नई नवेली दुल्हन जैसी, सज धज जाती हो,
और कुछ ही दिनों बाद,
तुम खुद में सारी कुदरत को,
सजा लेती हो,
तुम कितनी सुंदर हो कोटधार, कोटधार की बोली,
लगती बोलने में बड़ी ही प्यारी,
यहां के लोगों की बात निराली, घाट घाट में बहता यहां निर्मल पानी ,
तुम कितनी सुंदर हो कोटधार,
सब लोग करते तुझ से प्यार,
दूर दूर से लोग करते तुम्हारा दीदार,
सबका मन करता यहां आने को बारम्बार,
तुम कितनी सुंदर हो कोटधार।

सुंदर कोटधार: रेखा चंदेल का अद्वितीय चित्र

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