इस मंदिर तक पहुंचने के लिए मंडी ज़िला के इलाका सराज के बालीचौकी खण्ड के गांव थाची से हो कर ऊपर की ओर जाना पड़ता है।देव चुंज्याला मंदिर थाची के देवी हिडिंम्बहा मंदिर से 3-4 किलोमीटर चलने के बाद ऊपर चोटी पर स्थित चुंज्याला गढ़ के निकट पड़ता है। पहाड़ी शैली में बना यह छोटा सा मंदिर स्लेट टाईलों की ढलानदार छत से छता गया है,जिसका अपना छोटा सा ही गर्भ गृह है।
गर्भ गृह के बाहर प्रदक्षिणा पथ बना देखा जा सकता है।छोटा मंदिर होने के कारण ही इसके गर्भ गृह का प्रवेश द्वार भी छोटा सा ही है,जिसमें सुन्दर पाटों का आकार 3 फुट गुणा 2 फुट का देखा गया है जिन्हें आगे एक आकर्षक पीतल की सांकल से सुरक्षित किया गया है।प्रवेश द्वार की काष्ठ कला देखते ही बनती है।द्वार चौखट के दोनों ओर के बाहर के प्रथम खड़े थाम पर एक एक दंड धारी द्वारपाल को खड़ी मुद्रा में उकेरा गया है। थामों के ऊपर पड़े सरदल के ठीक मध्य में सिंह वाहन पर देवी माता को दिखाया गया है।बाहर से अंदर की ओर दूसरे वाले बायीं ओर के खड़े थाम के आधार की ओर मत्स्यवाहनी देवी को तथा दायीं ओर के खड़े थाम के आधार पर किसी अन्य देवी को दिखाया गया है।
ऊपर वाली पड़ी सरदल के मध्य में सुन्दर कमल फूल की आकृति बनाई गई है। चौखट के तीसरे वाले थाम के दायीं ओर आधार पर एक शहनाई वादक तथा बायीं ओर के खड़े थाम पर एक यौद्धा को उकेरे दिखाया गया है। ऊपर वाली पड़ी सरदल के ठीक मध्य में देव गणेश की बैठी मुद्रा की आकृति उकेरी गई है और गणेश के दोनों ओर सुन्दर नकाशी की गई है। खड़े चौथे थाम में दोनों ओर आधार पर एक एक सुंदर घुड़सवार को उकेरे दिखाया है। ऊपर वाली पडी सरदल को सुन्दर बेल बूटों को उकेर कर सुसज्जित किया गया है। इसी तरह से ऊपर की अंतिम सरदल को भी एक सिहं मुख को बना कर अलंकृत किया गया है।नीचे खड़े पांचवें थाम पर कुछ नृत्य मुद्रा में आकृतियां दिखाई गई हैं।
ऊपर के सरदलों पर ही कुछ साँपों के साथ ही साथ ड्रामों की आकृति जैसे भी एक पट्टी बनी दिखाई गई है। पट्टी के दायीं ओर ही दो मुखोटों के मध्य सुंदर ढंग से अलंकरण किया देखा जा सकता है।बायीं ओर भी दो आकृतियों को नृत्य करते दिखाया गया है।इसी तरह से सांपों के दायीं ओर एक सन्यासी को बैठे दिखाया गया है। इन्हीं आकृतियों के साथ ही साथ सात अन्य यौद्धा भी उकेरे गए हैं जिनके हाथों में इस प्रकार के अस्त्र शस्त्रों को क्रमश देखा जा सकता है अर्थात गध्दा, धनुष, कृपाण, ढाल, तलवार व कुछ अन्य अस्त्र शस्त्र आदि। शस्त्रधारियों के मध्य में ही शिव पार्वती के साथ साथ आगे वादकों भी दिखाया गया है,जिनमें पहले दो शहनाई वादक, फिर ढोलक,डफली वादक व फिर से एक शाहनाई वादक तथा इनके नीचे की ओर एक मृग को दिखाया गया है।अंत में भगवान विष्णु जी को उकेरे दिखाया है।यह सारा दृश्य भगवान शिव के शुभ विवाह को दर्शाता है।
देव मंदिर चुंज्याला के छोटे से गर्भ गृह के ठीक मध्य में एक छोटी सी शिव लिंग जैसी देव चुंज्याला की पिंडी स्थापित है।गर्भ गृह के बाहर प्रवेश द्वार के पास ही छोटा सा हवन कुण्ड बना देखा जा सकता है।प्रदक्षिणा पथ के बाहर आधार पर एक टांकरी का शिलालेख पढ़ने को मिलता है,जिससे मंदिर निर्माण की सारी जानकारी मिल जाती है,लेकिन राज मिस्त्री की अज्ञानता के कारण टांकरी की पटीका उल्टी लग गई है जिसे हर कोई पढ़ भी नहीं पाता। मंदिर केआहते में कुछ बरसेलानुमा प्रतिमाएं भी देखने को मिलती हैं जिन्हें कारदारों के बरसेले बताया जाता है।
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