भीम सिंह, गांव देहरा हटवाड़, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ।

यह पिंजरा है मिट्टी का
इक दिन गल-गल जावे
जैसी करनी कर चला
वैसा ही फल पावे।

तेरा मेरा कुछ भी नहीं
क्या कहां से लेकर आया
झूठे जग के सारे रिश्ते
जिसे तू समझ नहीं पाया।

फंसा रहा मोह माया में
न लिया प्रभु का नाम
आँखों पर पटटी बांध के
बिताई सुबह और शाम ।

डूबने से तुझे कौन बचाये
सफर तेरा लहरों पर
अपनी कुल्हाड़ी आप तूने
मारी अपने पैरों पर ।

अनजाना बन घूमा जग में
किया न सोच विचार
प्रभु चरणों में प्रीत लगाता
तो आज होता बेड़ा पार।

 

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