प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही साथ जहां मण्डी अपने असंख्य प्राचीन मंदिरों,देव सांस्कृतिक धरोहर ,उपजाऊ हरा भरे बल्ह के खेतों ,प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों(रिवालसर,शिकारी देवी, जजैहली ,देव कामरू नाग, पड़ासर, बारोट व कमलाहगढ़),व नमक की खानों के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाए है। इन्हीं सब के साथ ही साथ ,यदि शिक्षा के क्षेत्र में भी देखा जाए तो प्रदेश में मण्डी की स्थिति सबसे आगे ही बनती है। यहां के हर घर से कोई न कोई डॉक्टर,इंजिनियर,शिक्षक या वकील तो मिल ही जाता है। स्वतंत्रता से पूर्व भी यहां के लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए होशियार पुर,अमृतसर,लाहौर व दिल्ली तक को जाया करते थे। फलस्वरूप यहां के नौजवानों के संपर्क क्रांतिकारियों से भी बन जाया करते थे और क्रांतिकारी गतिविधियां का इस क्षेत्र में होने का कारण भी यही रहा है। क्रांतिकारी भाई हरदेव (स्वामी कृष्ण नंद)व भाई हिरदा राम इधर से ही तो प्रेरित हुवे थे और इस तरह मण्डी रियासत का नाम दूर दूर तक उजागर होता गया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कई एक विद्वानों जिज्ञासुओं ,संतों ,महात्माओं, कला व साहित्य प्रेमियों के इधर आने(डॉक्टर मुल्क राज आनंद, राहुल सांस्कृत्यान, त्रिलोचन शास्त्री , डॉक्टर नामवर सिंह , असद जैयदी , डॉक्टर निहार राजन राय , कमला प्रसाद ,डॉक्टर खगिंदर ठाकुर ,डॉक्टर तुलसी राम व अज्ञेय आदि )से व सामूहिक साहित्यिक गतिविधियों के फलस्वरूप ही मण्डी ,आज सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जानी जाती है। यहां के साहित्यकार आज देश भर में पढ़े जा रहे हैं।

यदि मण्डी शहर के ही दिवंगत साहित्यकारों की बात की जाए तो उनकी ही काफी लम्बी सूची बन जाती है और ये सभी शामिल साहित्यकार अलग अलग व्यवसायों से जुड़े कहानीकार,कवि,गीतकार आदि आ जाते हैंl लेकिन अपने इस आलेख में जिस दिवंगत साहित्यकार की चर्चा करने जा रहा हूं वह हैं स्वर्गीय पंडित भवानी दत्त शास्त्री जी जो कि मेरे शिक्षक भी थे और शिक्षा विभाग से ही सेवानिवृत हुवे थे वह मात्र एक शिक्षक ही नहीं बल्कि शास्त्री जी तो एक उच्च कोटी के कलाकार भी थे।

इनका जन्म मण्डी शहर में पुरोहित धनदेव जी के यहां 5 दिसंबर 1911 को हुआ था। इनकी माता का नाम थोली देवी था जो कि इनके जन्म के डेढ़ बरस बाद ही वह चल बसी थीं। शास्त्री जी एक अच्छे चित्रकार,अभिनेता,संगीतकार, निर्देशक व शुद्ध उच्चारण में भी माहिर थे। मुझे याद है जब मैं सातवीं या आठवी में पढ़ता था , तो शास्त्री जी सुबह प्रार्थना के समय राष्ट्र गान को ठीक ढंग से गाने व शुद्ध उच्चारण करने के लिए। वह खुद स्वरबद तरीके से गायन करते हुए अपने हाथों से इशारे करके निर्देश दिया करते थे। कक्षा में भी बड़े प्यार से अभिनय के साथ पढ़ाते थे । इसके साथ ही साथ मण्ड्याली के शब्दों का शुद्ध उच्चारण करते हुए अपनी लिखी कविताऐं सुनाते थे। मुझे अभी भी उनकी एक कविता के कुछ शब्द याद हैं ,जो कुछ इस प्रकार से हैः मांगण मासड़ू चिचड़ सारे इन्ही शब्दों का उच्चारण बड़े ही सुंदर ढंग से वह गाते हुवे सुनते थे।

शास्त्री जी मात्र पहाड़ी या मंडयाली ही नहीं बल्कि वह तो हिंदी व अंग्रेजी के भी मंजे हुवे विद्वान थे। वर्ष 1929 में मण्डी स्कूल से मैट्रिक करने के पश्चात इन्होंने 1930 में रत्न की परीक्षा पास करके,फिर पत्राचार के माध्यम से एफ 0 ए 0, प्रज्ञा व विशारद की परीक्षा पास करने के बाद वर्ष 1938 में जम्मू से शास्त्री व 1940 में पंजाब यूनिवर्सिटी से बी 0 ए 0 की परीक्षा भी पास कर ली।वर्ष 1943 में कुछ दिनों के लिए विजय हाई स्कूल में अध्यापक लग गए लेकिन शीघ्र ही मण्डी रियासत के धर्माथ विभाग में नियुक्त हो कर अपनी सेवाएं देने लगे तथा इस सेवा में वर्ष 1948 तक कार्यरत रहे। 1950 में शास्त्री जी शिक्षा विभाग में शास्त्री के रूप में नियुक्त हो कर इसी विभाग से वर्ष 1969 में सेवानिवृत हुवे थे।समाज सेवा व जनचेतना में रुचि रखने के कारण ही शास्त्री जी ने वर्ष 1948 में साहित्य सदन नामक संस्था की स्थापना करके साहित्यिक गतिविधियों के आदान प्रदान के साथ ही साथ गीता का संदेश भी जन जन तक पहुंचाने लगे ,दमदमा महल में साहित्य सदन का यह कार्यक्रम वर्ष 1973 तक चलता रहा।

वर्ष 1974 से साहित्य सदन का यह कार्य शास्त्री जी द्वारा अपने घर समखेतर से ही गीता की कक्षाओं के साथ किया जाने लगा। बाद में गीता की यही कक्षाएं (शास्त्री जी द्वारा प्रशिक्षित महिलाओं द्वारा) अप्रैल 1989 से खतरी सभा भवन में चलाई जाने लगीं जो कि आज भी चल रही हैं। इन सभी कार्यों के अतिरिक्त शास्त्री जी का लेखन व साहित्य के क्षेत्र में भी भारी योगदान रहा है। इनके द्वारा लिखित पुस्तकों में शामिल हैं: वर्ष 1950 में लिखित “गीतामृत,”जिसमें गीता के 19 श्लोकों का पहाड़ी में अनुवाद है। 1964 में लिखी पुस्तक हिंदी कविताओं के संग्रह की है। 1977 में लिखी “भज गोविंदम “नामक पुस्तक में गीता का पहाड़ी अनुवाद मिलता है। 1978 की पुस्तक” कुसुमंजली “संस्कृत काव्य से संबंधित है।1987 की” लेरां धारा री “में पहाड़ी गीत व कविताएं पढ़ने की मिलती हैं।1987 में ही एक अन्य पुस्तक “हिम सुमन गुच्छम” से संस्कृत काव्य का पहाड़ी अनुवाद मिलता है। वर्ष 1988 की “विपाशा लाशा”में भी संस्कृत काव्य का पहाड़ी अनुवाद मिलता है।फिर 1989 में “श्रीमद्भागवत गीता “की पुस्तक में भी गीता का पहाड़ी अनुवाद मिलता है।

ऐसे ही इसी वर्ष की एक अन्य पुस्तक में उपनिषद ईश, केन,कथा प्रश्ना व मुण्डक का पहाड़ी अनुवाद देखा गया है।इसी प्रकार का किया गया कुछ अधूरा अप्रकाशित साहित्य भी देखा जा सकता है ,जिस में शामिल हैं: मांडूक्य उपनिषद,तैतरीय, एत्तरेय ,श्रेतश्वत ,वेदान्त दर्शन के ब्रह्म सूत्र का पहाड़ी अनुवाद व तत्व चिन्तनसोपन का हिन्दी अनुवाद । शास्त्री जी द्वारा प्राप्त पुरुस्कारों व सम्मानो में शामिल हैं ‘। हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी का पहाड़ी साहित्य पुरस्कार वर्ष 26/3/1988, पहाड़ी साहित्य सभा दिल्ली द्वारा दिया साहित्य चुड़ामाणि सम्मान वर्ष 18/2/1989, हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी द्वारा दिया अकादमी शिखर सम्मान वर्ष 22 जुलाई 1994, भारत ज्योति पुरुस्कार वर्ष 2००6 साहित्य व ललित कलाओं के लिए।

भवनी दत्त शास्त्री जी ने हिंदी व पहाड़ी साहित्य,चित्रकला,गायन ,वादन व समस्त ललित कालों को प्रोत्साहित ही नहीं किया बल्कि प्राचीन व धार्मिक साहित्य का पहाड़ी में अनुवाद व पुस्तक रूप में प्रस्तुत करके जन जन तक पहुंचा कर एक सराहनीय कार्य को अंजाम दिया है जिससे आने वाली पीढ़ियां हमेशा उन्हें याद करती रहे गी। मण्डी शहर के दिवंगत साहित्यकारों में पंडित भवानी दत्त शास्त्री जी के अतिरिक्त कुछ अन्य साहित्यकार आ जाते हैं जिनका योगदान भी नहीं भुलाया जा सकता लेकिन आलेख के विस्तार को देखते हुवे इधर संक्षेप में ही इनका परिचय दिया जा रहा है।जो कि इस प्रकार से है: 1. स्व ०श्री बी ०एल ०हांडा, जो कि आई०पी०एस ०रैंक के अधिकारी थे और आई ०जी ०के पद से सेवा निवृत्त हुवे थे।प्रदेश से बाहर रह अपनी सेवाएं देने के कारण ही हिमाचली साहित्यकारों की पहचान से बाहर ही रहे हैं,लेकिन इनके लिखित साहित्य में 20 22 पुस्तकें शामिल हैं ,जिनमें उपन्यास,कहानी व कविताओं के संग्रह आ जाते हैं।

प्रदेश से बाहर रह कर भी ,हांडा जी ने अपने विचारों को कहानियों उपन्यासों व कविताओं के माध्यम से जन जन तक पहुंचा कर अपनी मण्डी व प्रदेश का नाम ऊंचा किया है और यह हम सब के लिए गर्व की बात है। स्व डॉक्टर बी एल कपूर नेत्र विशेषज्ञ चिकित्सक थे तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पद से सेवानिवृत हुवे थे इनके द्वारा 3 – 4 पुस्तकें जो कि कला ,संस्कृति व इतिहास से संबंधित हैं और आज एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में व शोध कार्य में सहायक सिद्ध हो रही हैं। स्व डॉक्टर सी एल मल्होत्रा, स्वास्थ्य विभाग से निर्देशक के पद से सेवानिवृत हुए थे। इनकी रुचि इतिहास में अधिक थी और इसी पृष्ठ भूमि की इनकी 3-4 पुस्तकें शोधार्थियों और बाहर से आने वाले पर्यटकों की लिए उपयोगी सिद्ध हो रही हैं।मल्होत्रा जी की अंतिम पुस्तक एक सामाजिक उपन्यास है।

स्व डॉक्टर नील मणि उपाध्याय पेशे से हिंदी के प्रोफेसर थे और प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत हुवे थे।इनके द्वारा कई शोध पत्र भी लिखे व पढ़े गए हैं तथा कला ,संस्कृति व मंदिरों पर इनकी 4-5 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है,जो कि पर्यटकों व शोध छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध हो रही हैं। हेमकांत कात्यायन,दैनिक पंजाब केसरी के बरसों पुराने ,जाने माने संवाददाता थे।अपनी संवाद सेवाओं के साथ ही साथ एक सुलझे साहित्यकार भी थे।कहानी,कविता, नाटक व समसामाहिक आलेख लेखन में भी अच्छे माहिर थे। इनके द्वारा लिखित लोककला व संस्कृति की पुस्तक बहुत पहले से ही लोकप्रिय रही है।

हुताशन शास्त्री,शिक्षा विभाग में शास्त्री के पद से सेवानिवृत होने के पश्चात इन्होंने अपना साप्ताहिक समाचार पत्र “शक्ति दर्शन “के नाम से चला कर ,लम्बे समय तक उससे जुड़े रहे और अपनी लोक कला व लोक संस्कृति को अपने संपादकीय व लेखन के माध्यम से जन जन तक पहुंचाते रहे। शास्त्री जी एक अच्छे लेखक के साथ ही साथ मंझे हुवे समीक्षक भी थे,मुझे भी शास्त्री जी का शिष्य होने का गर्व प्राप्त है। स्व प्रफुल महाजन परवेज, इंजिनियर प्रफुल जी हिमाचल पथ परिवाहन विभाग से महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत हुवे थे।इन्हें गजले लिखने व शेयर ओ शायारी का बहुत शौक था।इनके द्वारा लिखित दो पुस्तकें जो गजलों व नज्मों से संबंधित हैं काफी चर्चित रही हैं।

स्व नरेश पंडित,प्ररूपकार के पद से सेवानिवृत हुवे पंडित जी,किसी का चेहरा पढ़ने में ही माहिर नहीं थे बल्कि चित्रकला,कार्टून कला, व्यंग व हास्य लेखन के साथ ही साथ सुलझे हुवे कहानीकार भी थे।इनकी तीन चार पुस्तकें कहानियों की प्रकाशित हो चुकी हैं और काफी चर्चा में रही हैं। स्व नागेश भारद्वाज, एक मंझे हुवे कहानीकार,समीक्षक ,कवि व साहित्यकार थे। कुछ समय मुंबई में भी संघर्ष करते रहे और वहां के कई प्रसिद्ध समाचार पत्रों से जुड़े रहे,लेकिन वहां दिल न लगने से वापिस मण्डी आ गए।इनकी भी कुछ प्रकाशित किताबे इनका साहित्य प्रेमी होने का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। स्व केशव शर्मा, पहले कुछ समय तक हिमाचल पथ परिवहन में अपनी सेवाएं देते रहे इसी मध्य (कामरेड विचारधारा से जुड़े होने के कारण )नोकरी छोड़ कर रूस चले गए ।

कुछ समय के पश्चात जब रूस से वापिस आ गए तो यहां मजदूर नेता के रूप में कार्यरत हो गए और कम्युनिस्ट विचार धारा का प्रचार प्रसार करने लगे।इसके साथ ही साथ लेखन का कार्य भी चलता रहा ।केशव जी लोक साहित्य,लोक कला ,कविता पाठ व लंबे लंबे आलेख लिखने में भी माहिर थे।इनके द्वारा लिखी 4,5 पुस्तके आज भी शोधार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध हो रही हैं। स्व डॉक्टर कांता शर्मा, शिक्षा विभाग में हिंदी प्रवक्ता के रूप में कार्यरत थीं और साहित्य के साथ ही साथ अच्छी कविता लिखती थीं, इनकी बहुत आगे जाने की उम्मीद थी,लेकिन शायद विधाता को ऐसा मंजूर न था और शीघ्र ही चली गई इनकी 4-5 कविता की पुस्तकें इनकी याद दिलाती रहें गी। स्व ध्रुव कपूर, शिक्षा विभाग में टी जी टी अध्यापक थे ,लेकिन बहुत ही सुंदर सुंदर कविताएं लिख कर हैरान कर देते थे।

नरेंद्र साथी, स्थल सेना से सेवानिवृत साथी की कविताओं व गीतों से देशभक्ति देश सेवा ,व प्रभु भक्ति का सन्देश मिलता था और नरेंद्र जी एक आदर्श नागरीक बनने को हमेशा प्रोहत्साहित करते थे।14. स्व0प्रकाश चंद कपूर,खाद्य व नागरिक आपूर्ति विभाग से सेवानिवृत कपूर जी शेरो _ओ शायरी और नज्मों के साथ ही साथ बड़ी ही सुंदर सुंदर कविताएं सुनाया करते थे।इनकी कविताओं व नज्मों में जोश रहता था और बड़े ही आवेश में बोलते भी थे।कपूर जी की याद आज भी बराबर बनी है। स्व 0नरेंद्र सिंह नामधारी, इनका अपना प्रेस का व्यवसाय था और एक मासिक पत्रिका “युगमर्यादा “के नाम से निकलते थे। कला ,संस्कृति , धार्मिक साहित्य व कविता पाठ में नरेंद्र जी विशेष रुचि रखते थे।

इनके साहित्यिक आलेख , समीक्षात्मक संपादकीय व प्रतिक्रियाएं युगमर्याद पत्रिका में निकलती रहती थीं। स्व योग राज गौतम,पंचायत विभाग से सेवानिवृत हुवे थे। इनकी लंबी लंबी कविताएं देश भक्ति ,राष्ट्र विकास व स्वास्थ्य विषयों से जुड़ी रहती थी और ये समय के बहुत पाबंद थे। ये समस्त दिवंगत साहित्यकार तो शहर मण्डी से संबंध रखते हैं,लेकिन यदि जिले भर के दिवंगत साहित्यकारों का लेखा जोखा किया जाए तो हमें ओर भी बहुत सी नई नई जानकारियां मिल सकती हैं, लेकिन उनके लिए फिर कभी ।इसी के साथ सभी दिवंगत साहित्यकारों को शत शत नमन।

हिमाचल साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियां : डॉo कमल केo प्यासा

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