डॉ कमल के प्यासा, जीरकपुर, चंडीगढ़
उसने पैंट के ऊपर टॉप पहन रखा था, उम्र यही कोई २०-२२ के करीब ही रही होगी । टिकट हाथ में पकड़े उसने नंबर देख कर मेरे साथ वाली सीट पर बैठ गई । बैठते ही उसका मोबाइल शुरू हो गया था ।
“हां… हां… कल वापिस आ जाऊं गी… वो है न मेरी भाभी, उसकी ननद के बेटे का जन्मदिन है न, उसी के यहां जा रही हूं, तुम्हें पहले भी तो बताया था ।” कह कर उसने मोबाइल बंद कर दिया ।
रिंग फिर बजने लगी, “हां… हां… यहीं अपने पिंड तक जा रही हूं… ओ यार मम्मी की तबियत कुछ ठीक नहीं है न, हां… हां… बाई गॉड कल आ जाऊं गी… तूं कहां है अब… ? अच्छा फिर आ कर मिलती हूं ।” कह कर उसने मोबाइल बंद कर दिया ।
वह बोतल निकाल कर फिर पानी पीने लगी । मोबाइल फिर बजने लगा था ।
“हां… हां… क्या हो गया ? ठीक है, आंटी से कह देना मैं आ कर हिसाब करके खाली कर दूंगी उनका कमरा, मुझे भी नहीं रहना घुट-घुट कर । मेरा वहां जो अटैची पड़ा है तूं उसे अपने कमरे में रख लेना और आंटी से कह देना चिंता न करे… ओके” कह कर उसने फोन बंद कर दिया ।
कुछ देर बाद उसने फिर अपनी दूसरी सहेली का नंबर लगाया, “हां दीशा, क्या कर रही है… ? मेरे लिए कमरा देखा कि नहीं… ? मैं कल आ रही हूं सामान ले कर… हां, हां, अकेली ही रहूंगी भई और क्या… कभी-कभीं घर से भाई बहिन आ सकते, कह देना उससे और क्या, ऐसा थोड़ा बहुत तो चलता ही है, एडवांस भी आ कर दे दूंगी ।”
फिर उसने फोन बंद कर दिया । अब उसने अपने पर्स से चिप्स का पैकेट निकाला और खोल कर चिप्स खाने लगी, तभी मैंने उससे बातचीत करते हुवे पूछा, “बेटा कहां जा रही हो ?”
“अंकल मंडी जा रही हूं अपने रिश्तेदारी में।”
मण्डी में… कहां… किसके?”
“मेरे रिश्तेदार हैं, वह लेने आएगे, गुरुद्वारे के नजदीक रहते हैं ।”
उसने मुझे उत्तर देते हुवे कहा तो मैंने उससे कहा, मण्डी में तो २-३ गुरुद्वारे हैं, किस गुरुद्वारे के पास रहते है वे, व क्या करते हैं?”
मेरा ऐसा कहने से वह कुछ झेंप गई और कहने लगी, “नहीं वह खुद मुझे बस स्टैंड पर लेने आ रहे हैं ।”
बस आगे बड़ रही थी और बीच बीच में वह अपनी खैर खबर व पहुंचने की जानकारी भी उसे (उन्हें) देती जा रही थी ।
दूसरी तरफ से फिर फोन की रिंग आई तो कहने लगी, “बस पहुंचने ही वाली हूं, तूं पहुंच जा बस स्टैंड पर, मुझे यहां का कुछ भी अता पता नहीं ।”
फोन बंद हो गया और हमारी बस, बस स्टैंड पर लग गई थी । लेकिन वहां कोई भी उसे लेने नहीं पहुंचा था । वह घबराई हुई थी, और उसकी नजरें इधर उधर उसे ही तलाश रही थीं ।
उसने फिर उसे फोन किया जिस पर उसने उसे ट्रैफिक का एकतरफा (होने से अधिक गाडियां) होने के कारण गुरुद्वारे के पास आने को कहा, जिस पर वह मेरे से फिर गुरुद्वारे का रास्ता पूछने लगी । लेकिन मंडी में शिवरात्रि मेले में अधिक भीड़ भड़का होने के कारण, मैने उसे उससे बात करवाने को कहा । इस तरह फिर से उससे बात करने पर पता चला कि वह ट्रैफिक में फंसा है और बस स्टैंड की तरफ ही आ रहा है । एक लडकी को देखते हुवे मैं भी तो धर्म संकट में फंस गया था । और वह भी मेरे से अनुरोध करने लगी थी कि अंकल जी आप उसके आने तक कृपया मेरे लिए रुक जाएं । मैंने उसे किसी भी तरह का फिकर न करने को कहा और देखते ही देखते कुछ देर के बाद वह भी पहुंच गया । उसे देखते ही उसके चेहरा खिल उठा था और उसके साथ जल्दी से गाड़ी में बैठ गई । गाड़ी पंजाब की टैक्सी थी और वह चालक यही कोई ३०-३५ वर्ष युवक ही था ।और फिर देखते ही देखते दोनों हाथ हिलाते हुए उसी गाड़ी में छूमंतर हो गए और मैं अपनी राह चल दिया ।
अगले दिन सुबह के समाचार पत्र में बड़े-बड़े अक्षरों में खबर छपी थी “स्वारघाट के निकट के होटल में एक टैक्सी चालक के साथ चंडीगढ़ की युवती को रंगरलियां मानते पकड़ा गया । दोनों के मोबाइल खंगाले जा रहे हैं और पूछ ताच्छ की जा रही है । खबर पढ़ते ही मैं पिछले कल की यादों में खो गया !
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