मई महीने की तपती दुपहरी थी और प्रकाश बाबू सरकारी बस से ऊना से होशियारपुर जा रहे थे| बस सवारियों से खचाखच भरी हुई थी| कुछ भाग्यशाली यात्रियों को सीट मिल गई थी, अत: वे निद्रा देवी की गोद में बैठकर इत्मिनान से खर्राटे भर रहे थे | आधे से अधिक यात्री बस की छत से लगे हुए डंडे को पड़कर सिटासीन सवारियों को हसरत भरी निगाहों से देख रहे थे जैसे कोई भूखा, भोजन की थाली को देखता है|

रणजोध सिंह

यद्यपि बस की खिड़कियों से भी गर्म हवा ही अंदर आ रही थी मगर फिर भी सांस आने का एक सकून सा मिल रहा था| अचानक एक खिड़की में जोर से आवाज हुई और उसका शटर बंद हो गया| उस सीट के पास खड़ी हुई सवारियां जो पहले से ही पसीने से लथपथ थीं, को सांस लेना भी दूभर हो गया|

कुछ नौजवानों ने उस खिड़की को खोलने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया, पर सफलता न मिली| अंततः में वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यदि खिड़की के शीशे को किसी रस्सी से बांध दिया जाए तो काम बन सकता है| मगर आसपास कोई रस्सी न थी| एक नौजवान ने इसका भी उपाय ढूंढ लिया और बस में लगी हुई बिजली की तारों का रस्सी के रूप में प्रयोग करने के लिए उतारू हो गया|

उसने जैसे ही बिजली की तारों पर हाथ डाला, प्रकाश बाबू जो बिजली विभाग से ही रिटायर हुए थे, ने उसका हाथ पकड़ लिया और बड़ी विनम्रता से बोले, “अगर तुम बस की बिजली की तारों को तोड़ोगे तो रात को एक भी लाइट नहीं जलेगी और पूरी बस में अंधेरा में हो जायेगा| थोड़े देर के सुख के लिए हम लोग पब्लिक प्रॉपर्टी का इस प्रकार नुकसान नहीं कर सकते|

” युवक ने उनका हाथ झटक दिया और गुस्से से बोला, “हमारे इतने से सुख से तुम्हें बहुत ईर्ष्या हो रही है| यहां इस देश के नेता देश को लूटकर खा गए उसका क्या|” परंतु युवक के इस कथन से प्रकाश बाबू जरा भी विचलित नहीं हुए और दृढ़ता से बोले, “नेताओं को तो मैं नहीं जानता परंतु इस समय में तुम्हें इस बस की वायरिंग को हाथ नहीं लगने दूंगा|

” युवक गुस्से से एकदम तमतमा उठा,और बड़ी ही अभद्रता पूर्वक बोला, “कोई बात नहीं अगला स्टेशन आने दो पहले तुम्हारी ही देशभक्ति निकाल देते हैं|” इस बीच ऊंची ऊंची आवाज़े सुनकर बस कंडक्टर भी वहां पहुंच गया| बस में बैठी हुईं सवारियों ने युवक से तो कुछ नहीं कहा, मगर प्रकाश बाबू को आदरपूर्वक सीट देते हुए बोले, “आप चिंता न करें हमारे रहते कोई बस को नुकसान नहीं पहुंचा सकता|” बस में बैठी हुई सभी सवारियों ने उस युवक को ऐसे घूरना आरम्भ कर दिया जैसे वह कोई बड़ा अपराधी हो| अगला स्टेशन आया और वह युवक और उसके साथी चुपचाप बस से उतर गयें| शायद उन्हें समझ आ गया था कि अँधेरे का साम्राज्य तब तक ही है जब तक रात है| सूर्य निकलते ही अँधेरा भाग निकलता हैं|

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