हिमाचल प्रदेश में बड़े भूकंप की स्थिति में दिव्यांगों को बचा पाना नामुमकिन होगा। प्रदेश की राज्य आपदा प्रबंधन नीति और योजना में दिव्यांगों से संबंधित आपदा प्रबंधन का जिक्र तक नहीं है। यह बड़ी गंभीर स्थिति है क्योंकि आपदा की स्थिति में यह वर्ग  सबसे ज्यादा जोखिम में होता है। संपूर्ण हिमाचल प्रदेश बड़े भूकंप के खतरे वाले हिमालय क्षेत्र में शामिल है। यह जानकारी आपदा प्रबंधन के जाने-माने विशेषज्ञ नवनीत यादव ने उमंग फाउंडेशन के एक वेबीनार में दी। वह प्राकृतिक आपदा प्रबंधन में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम( यूएनडीपी), केंद्र और राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करते रहे हैं तथा डूअर्स के कार्यक्रम निदेशक हैं।

कार्यक्रम की संयोजक और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एमए (सोशल वर्क) की छात्रा सुमन साहनी ने बताया कि मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर उमंग फाउंडेशन का यह 33 वां साप्ताहिक वेबीनार था। “पहाड़ पर भूकंप का खतरा: सरकार और समाज का दायित्व” विषय पर गूगल मीट पर हुए कार्यक्रम में बड़ी संख्या में युवाओं ने हिस्सा लिया।  उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि वे आपदा प्रबंधन योजना पर पुनर्विचार के लिए सरकार से कहेंगे ताकि उसमें दिव्यांगजनों को शामिल किया जा सके। ऐसा नहीं होने पर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा। नवनीत यादव ने भूगर्भीय हलचल की जानकारी देते हुए कहा कि समूचे हिमालय क्षेत्र में कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है। हिमाचल प्रदेश का अधिकतर हिस्सा बड़े भूकंपीय खतरे के क्षेत्र (सेसमिक ज़ोन) 4 और 5 में आता है। प्रदेश में वर्ष 2011 में राज्य आपदा प्रबंधन नीति घोषित की गई थी। इसके बाद वर्ष 2012 में राज्य आपदा प्रबंधन योजना तैयार की गई।

उन्होंने कहा, “हैरानी की बात यह है कि इनमें भूकंप अथवा अन्य किसी बड़ी आपदा की स्थिति में दिव्यांगजनों के बचाव एवं राहत की योजना का कोई जिक्र तक नहीं है। जबकि यही वर्ग सबसे ज्यादा जोखिम में रहता है।  आपदा से पहले की तैयारियों से जुड़ी सभी गतिविधियों जैसे कि मॉक ड्रिल व प्रशिक्षण कार्यशालाओं में दिव्यांगजनों को शामिल करने के प्रयास भी बेहद सीमित रहे हैं।” नवनीत यादव ने कहा कि डिजास्टर मैनेजमेंट पॉलिसी में दृष्टिबाधित, शारीरिक विकलांग, मूक बधिर, बौद्धिक अक्षमता वाले,  डेफ-ब्लाइंड एवं अन्य दिव्यांगों के बारे में कार्य योजना को शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों से भी उन्हें जोड़ा जाए। भूकंप के बारे में प्रचार सामग्री ब्रेल, ऑडियो और साइन लैंग्वेज में  भी बनाई जाए। इसके अलावा प्रचार सामग्री को हिंदी एवं स्थानीय पहाड़ी भाषाओं में भी छापा जाए। उन्होंने बताया कि मनुष्य अपनी गलतियों से भूकंप में जान माल का नुकसान करता है। यदि भूकंपरोधी भवन बनाए जाएं, घर या दफ्तर में अलमारियां और उसके ऊपर रखे सामान, पानी की टंकी, गमले आदि को गिरने से रोकने के प्रबंध हों तो चोट एवं मृत्यु का खतरा काफी घट जाता है।

भूकंप में 70% लोग मलबे में दबकर नहीं बल्कि घर के भीतर अलमारी या अन्य सामान गिरने से लगी चोट से मरते हैं या विकलांग हो जाते हैं। पहले स्वयं को बचाएं और उसके बाद दूसरों को बचाने पर ध्यान फोकस करें। भूकंप आने के बाद आग लगने का खतरा भी काफी अधिक होता है। इसलिए राहत और बचाव के प्रशिक्षण में इस पर भी ध्यान रखा जाना चाहिए। उनके अनुसार अभी भारत में भूकंप की पूर्व सूचना देने का प्रभावी तंत्र मौजूद नहीं है जैसा कि जापान एवं कुछ अन्य देशों में है। इस बारे में रिसर्च पर अधिक फोकस की आवश्यकता है। भूकंप रोधी मकान बनाने की तकनीक भारत में आसानी से उपलब्ध है। पुराने बने भवनों को भी थोड़ा सा प्रयास करके भूकंपरोधी बनाया जा सकता है। लेकिन आमतौर पर कुछ सरकारी भवनों को छोड़कर अन्य भवन बनाने में लोग  नेशनल बिल्डिंग कोड लागू नहीं करते। कार्यक्रम के संचालन में उदय वर्मा, साहिबा ठाकुर और मुकेश कुमार ने सहयोग दिया।

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