किरण वर्मा, गाँव रेहल

मेरे गांव में बहती है एक नदी
स्वच्छ, निर्मल धारा जिसकी ।
ना जाने कितनों की प्यास बुझाती।
सिंचित कर बाग बगीचे
किसानों के हर्ष का कारण बनती
मेरे गांव में बहती है एक नदी।
एक प्यारी सी नदी जिसे देख कर,
मन में जाग उठती अरमानों की घड़ी।
बलखाती निस्वार्थ चलती जाती बहती जाती।
उसके स्पर्श से सिहर उठती
वृक्षों की डाली फूलों की कली
मेरे गांव में बहती है एक नदी
एक न्यारी सी नदी
जहां से गुजरती आस सबकी जगती
कोई नाम उसे पनिहारन देता
कोई कहते अमृत की फली
किसी ने कहा जलपरी है।
शांत मन वाली है
ध्येय केवल सृजनकारी है।
नयन तृप्त हो जाते देखकर उसकी जलधारा
गांव की गंगा तारिणी है।
वह सचमुच साक्षात अन्नपूर्णा है।
धन्य हो ऐसी मेरे गांव की नदी तुम हमारी जल पूर्णा हो।
देव तुल्य मानव मूल्य ऐसी तुम्हारी मनोहर मनमोहक छवि है।
मेरे गांव में बहती है एक नदी।
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