यदि हम शिव और शक्ति के मंदिरों की ओर ध्यान दें तो पता चलता कि पहाड़ी क्षेत्रों में इनकी संख्या दूसरे मंदिरों से कुछ अधिक ही है। यही बात इधर हमारे हिमाचल पर भी लागू होती है। फिर मंडी तो मंदिरों के लिए शुरु से ही प्रसिद्ध रही है और छोटी काशी के नाम से भी जानी जाती है। यहां के अधिकतर मंदिर भगवान शिव व शक्ति से ही संबंधित देखे जा सकते हैं। वैसे भी शिव का अस्तित्व शक्ति के बिना कुछ नहीं रहता। भगवान शिव की प्रतिष्ठा के संबंध में शवतेश्वर उपनिषद से बहुत कुछ जनकारी मिलती है तथा इन्हें परब्रह्म भी कहा जाता है। सभी देवताओं को भगवान शिव के अधीन ही बताया
गया है व ऐसा भी कहा जाता है कि इन्हीं की शक्ति से मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रकृति को इन्हीं की माया बताया गया है। ऋग्वेद में तो शिव को रुद्र कहा गया है,जो कि इनके उग्र रूप का परिचय देता है। वैसे भी तो रुद्र को प्रकृति की विनाशकारी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाला देवता माना जाता है।ऋग्वेद में ही आगे कहा गया है कि भगवान शिव जब उग्र रूप में होते हैं तो तब वह पशुओं व मनुष्यों का संहार करते हैं। जब कि सौम्य रूप में भगवान शिव को संतान व समृद्धि के लिए साध्य बताया गया है। अथर्ववेद में तो भयंकर स्वरूप के कारण ही इन्हें पशुपति भी कहा गया है।
पुराणों में भगवान शिव को महायोगी कहा गया है तथा इनकी तीन प्रकार की प्रतिमाएं बताई हैं,जो कि मानव रूपी,लिंग रूपी तथा अर्धनारीश्वर के रूप में मिलती हैं। शिव की प्रतिमाओं में इन तीनों स्वरूपों के साथ ही साथ अनेकों विभिन्न नामों के शिव मंदिर भी अपनी अनूठी मूर्ति निर्माण शैली के (कला व मूर्तिशास्त्र की दृष्टि से)देखने को जिला भर में मिल जाते हैं। कहीं कहीं तो इन शिव मंदिरों को उनके निर्माण करने वाले या फिर स्थान विशेष से संबंधित होने के कारण ही उसी नाम से जाना पहचाना जाता है। अकेले मंडी शहर में ही लगभग 25 भिन्न भिन्न नामों से पहचाने जाने वाले शिव मंदिर गिनाए जा सकते हैं। जिनमें से कुछ नाम इस प्रकार से हैं,अर्थात
भूत नाथ,अर्धनारीश्वर, कामेश्वर,महाकाल,नीलकंठ,पंचवक्त्र,महामृत्युञ्जय,त्रिलोकीनाथ,एकादशरुद्र,रणेश्वर, चलेश्वर,शिवशंकर,महंती महादेव,गुप्तेश्वर, सिद्धशम्भू, खवासी महादेव,उत्तमु महादेव,नेगी पाधा महादेव,गोसाई महादेव,तारा पति महादेव व रुद्र महादेव आदि। विभिन्न नामों से पहचान रखने वाले इन सभी शिव मंदिरों में अपने अलग अलग स्वरूपों की शिव प्रतिमाओं के साथ ही साथ अलग अलग प्रकार के लिंग रूप भी देखने को मिलते हैं। मंडी शहर से बाहर भी अनेकों इसी तरह के विभिन्न नामों की पहचान रखने वाले शिव मंदिर देखने को मिलते हैं, जिनकी अपनी पहचान व मान्यता बनी है।
इन्हीं मंदिरों में से एक पिपलू महादेव नाम का मंदिर भी आ जाता है,जो कि पिपलू नामक गांव से अपनी पहचान रखता है। मंडी के बल्ह क्षेत्र का पिपलू नामक यह गांव सकरोहा(राजगढ़) नामक कस्बे से ऊपर की ओर पड़ता है। मंडी से सड़क मार्ग से इस स्थल की कुल दूरी लगभग 23-24 किलो मीटर की बनती है। पिपलू के इस शिव मंदिर को पहुँचने से पूर्व रास्ते में ही राजगढ़ का प्रसिद्ध शक्ति स्थल (माता देवी कोयला का मंदिर )भी देखने को मिलता है। इस मन्दिर से पिपलू महादेव मंदिर की दूरी यही कोई दो- ढाई किलो मीटर ही रह जाती है।
मंदिर क्षेत्र में प्रवेश करने से पूर्व सबसे पहले आंगन द्वार के एक ओर,एक विशाल (आदम कद)देव गणपति की प्रतिमा दायीं ओर देखने को मिलती है।फिर प्रवेश करते ही प्रांगण में दो बड़े बड़े प्राचीन पीपल के वृक्ष देखने को मिलते हैं।दोनों पीपल के वृक्षों के नीचे बैठने की लिए सुन्दर थड़े(चबूतरे) भी बने हैं। इन्हीं वृक्षों से थोड़ा आगे हट कर, सुन्दर शिखर शैली का चबूतरे पर बना छोटा सा पिपलू महादेव मंदिर देखा जा सकता है। इस छोटे से मंदिर का गर्भ गृह भी छोटा सा 6 फुट गुणा 6 फुट आकर का ही है। गर्भ गृह के ठीक मध्य में पाषाण शिव लिंग स्थापित है।
बाहर की ओर छोटा सा अंतराल और फिर खुले चबूतरे पर ही प्रदक्षिणा पथ भी बना है। शिखर शैली के बने इस छोटे से मंदिर की बाहरी दीवारों के झरोखों में रखीं देवी देवताओं की सुंदर सुन्दर प्रतिमाएं भी देखी जा सकती हैं। इन्हीं देव प्रतिमाओं में देव ऋषि ब्रह्मा की भी एक प्रतिमा देखने को मिलती है। मंदिर के गर्भ गृह के सामने छोटा सा शिव वाहन नन्दी भी बैठी मुद्रा में दिखाया गया है। वाहन नन्दी की प्रतिमा में जो विशेषता इधर देखी गई ,वह अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलती। अर्थात इस नन्दी वाहन ने अपना मुंह पीछे की ओर मोड़ रखा है । जब कि आम मंदिरों में नन्दी का मुंह गर्भ गृह की ओर ही देखने को मिलता है।
गर्भ गृह से शिव लिंग स्नान जल व दूध को बायीं ओर बने सिंह मुख (निकास)द्वारा बाहर आता है जो कि नीचे बने बड़े से नौण में मिल जाता है।मंदिर में बायीं ओर नीचे बने नौण की निर्माण शैली देखने योग्य है। यहां पर भी बहुत से झरोखे बने हैं और इनमे भी देवी देवताओं की प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं। मंदिर के सिंह मुख से निकलने वाला जल व दूध जिस स्थान से नीचे गिरता है,उसी के ठीक नीचे की ओर साढ़े चार फुट की खड़ी शिला पर बनी पांच पैनलों में बनी (सुन्दर अलग अलग) देव आकृतियां दिखाई गई के हैं। इन आकृतियों में सबसे नीचे के पैनल में मत्स्यवाहनी देवी गंगा,फिर देव ब्रह्मा जी तथा शेष में कुछ अन्य ऋषि मुनियों को दिखाया गया है।
ऐसा भी बताया जाता है कि राजाओं के समय इसी नौण से पानी का वितरण राजगढ़ व आस पास के गांव में किया जाता था।मंदिर क्षेत्र में ऊपर की ओर एक आदम कद राम भगत हनुमान जी की भी प्रतिमा देखी जा सकती है।बाहर से आने वाले लोगों के ठहरने के लिए ,मंदिर के दायीं ओर एक छोटी सी सराय भी बनी है। इसी सराय में एक महात्मा आने जाने वलों के लिये प्रसाद व खान पान का भी प्रबन्द भी करते देखे गए हैं। चारों ओर हरयाली और प्राकृतिक सुंदरता को देखते हुए शिव मंदिर पिपलू, मात्र पूजा पाठ या अन्य आयोजनों के लिए ही उचित नहीं बल्कि प्रकृति प्रेमियों,पर्यटकों, साहसिक भ्रमण करने वालों व देव स्थलों में आस्था रखने वालों के लिए एक सुन्दर व दर्शनीय स्थल है।
AI Safety Summit 2023: A Global Gathering On AI Risks And Mitigation Strategies