डॉ० कमल के प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

मंगसरू के हाथ अभी भी मिट्टी से सने थे। वह जोर जोर से मिट्टी को गूंथते हुवे जमीन पर पटक रहा था।पिछले कई दिनों से न जाने उसने कितने ही मिट्टी के दिए बना दिये थे!बस दीवाली तक ही तो खूब जोर लगता था ये मंगसरू। भई करता भी क्या सर्दी जो शुरू हो गई थो,लेकिन उसकी पत्नी का शरीर तो आज कल भी, (उन्हीं गर्मी वाले कपड़ों में) अक्सर झाँकता नज़र आ ही जाता है। इधर 7 साल की उसकी बेटी भी तो , उस टूटी चप्पल को न जाने कब से अपने नन्हें पैरों में घसीट रही थी। 5 साल के चिनकू के पास अभी भी तो अपने बस्ते का कोई जुगाड़ नहीं था। तभी तो मंगसरू दिन रात लड़ता रहता था मिट्टी से ,और करता था इंतज़ार दीवाली के आने का इस तरह धड़ाधड़ दिए बना कर।

दीवाली आ गई थी और मंगसरू भी दिए लेकर बाजार पहुँच गया।अपनी बोरी से दिए निकल कर उन्हें बेचने के लिए सजा दिए थे। रमेश भी दीवाली का सामान खरीदने अपने परिवार बच्चों सहित बाजार पहुंचता है। बच्चों की पसंद के 1000/-रुपये के पटाखे ,छोटी बिटिया के लिए 300/-की डोल, कुछ गिफ्ट पैक व पत्नी की पसंद के 8-10 मिठाई के डिब्बे लेकर वह मंगसरू से दिए देखते हुवे मोल भाव करके 2 दर्ज़न दियों के 15/-रुपये प्रति दर्जन के हिसाब से 30/- रुपये के स्थान पर उसे 25/- रुपये देते हुवे कहने लगता है, 25/-रुपये बहुत होते हैं रख लो इन्हें।

मंगसरू 25/- रुपये में ही ख़ुश हो जाता है,क्योंकि उसके तो सारे दिए जो खत्म हो जाते हैं और साथ ही 600/-रुपये भी बन जाते हैं।वह अपनी बोरी समेटी सबसे पहले अपनी बेटी के लिए एक कैंची चप्पल, छोटे बेटे के लिए छोटा सा बस्ता व पत्नी के लिए एक 200/- रुपये का सूट लेकर ,चलते चलते बच्चों के लिए मिठाई में 10/- के बताशे और 10/-रुपये की जलेबी लेकर ,खुशी खुशी घर पहुंच जाता है। उधर मंगसरू की पत्नी ने घर आंगन को गोबर व मिट्टी का लेप करके सजा रखा था और बस पति के आने पर दीवाली मनाने की तैयारी में ही थी। मंगसरू के घर पहुंचे पर ,उसके बच्चे व पत्नी खुशी खुशी से मिलते हैं ।

मंगसरू बेटी को कैंची चप्पल, बेटे को बस्ता तथा पत्नी को सूट पकड़ा कर ,निचिंत हो कर बीड़ी सुलगा लेता है तथा पत्नी बच्चों को पति द्वारा लाई मिठाई देने लगती है। उधर रामेश व उसका परिवार दियों,मोमबत्तियों व लड़ियों को लगा कर पटाखों को चलाते हैं और कहने लगते हैं,”मझा नहीं आया पटाखें कुछ कम रह गए !”फिर रामेश पत्नी से कहता है,”देख भगवान उधर घिसा भाई से मिठाई का डिब्बा आ गया है और मिठाई भेजनी रह गयी है !”अरे अभी उधर कनपटिये के यहां से भी तो आनी है उसी से जुगाड़ हो जाये गा! रमेश की पत्नी ने धीरे से कहा।

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